19 MAR 2018 AT 0:13

एहसास हमारे शब्द बनकर
कागज पर छप जाते हैं
नित कितनी ऊंचाईयां कवि
यूंँ ही तय कर आते है
शब्दों की माला मे गुंथकर
ये कागज का मोल बढाते है
एहसास हमारे शब्द बनकर
जब कागज पर छप जाते हैं ।।

- Neetish