यु मंज़िल का मिल जाना
पथरीली थी डगर, और दुश्मन था ज़माना
पांवों में पड़ी थी, रस्मों रिवाज़ो की ज़ंज़ीर
चला रहे थे लोग मुझ पर, बांतों के जो तीर
घायल पड़ा था कौने में, मेरा आत्मविश्वास
लगा नहीं था मुझमें हैं, कुछ भी इतना खास
रौशनी बनके तुमने ही तो, मुझको राह दिखाई थी
कदम बढ़ाने की वो हिम्मत, तुमसे ही तो आईं थी
धीरे धीरे सारे पहरे, तुमने ही तो हटाए थे
मेरे अंदर के सारे डर, कैसे मार भगाएं थे
मां, तुम ना होती तो यह चिड़िया,
पिंजरे में क़ैद ही रह जाती
निडर, अडिग, स्वतंत्र और शांत,
कभी ऐसी ना बन पाती
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