Navnit Pratik Singh   (‘काग़ज़ी परिंदा’)
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Writer, Digital Creator
Joined 13 November 2016


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21 FEB 2022 AT 21:17

जो ना निभ सकी वो वफ़ा कैसी?
तुम हो कर भी मेरी, मेरी ना हो सकी
आख़िर तेरी रज़ा कैसी?
अग़र ग़लत वो नहीं, हम नहीं
फ़िर मिली क्युँ सिर्फ़ मुझे
ऐ क़मभक्त वक़्त ये तेरी सज़ा कैसी?

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21 FEB 2022 AT 8:16

"कभी कभी इबादत से ज़्यादा इज़ाज़त ज़रुरी होती है।"

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12 FEB 2022 AT 9:36

मध्यम वर्ग के खुदगर्ज़ हैं हम,
हमारी तिज़ोरी इतनी विशाल नहीं
के दिल ख़ोल अँधा पैसा किसी पर लुटा दें।
और ईमान इतना बिकाऊ भी नहीं
कि किसी के हक़ की कमाई ख़ुद पर उड़ा लें।— % &

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11 FEB 2022 AT 8:50

"माँ, तेरे लिए मैं आज क्या लिखूँ?
तूने तो ख़ुद मुझे हर रोज़ लिखा है।"

(पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें)— % &

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1 FEB 2022 AT 18:57

"नाक़ामयाब हूँ, नाक़ारा नहीं।
ऐसी भी क्या नफ़रत मुझसे?
असामर्थ्य हूँ मैं, आवारा नहीं।"— % &

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26 JAN 2022 AT 9:32

"क्या हम सच मुच् गणतंत्र हैं?
क्या हम सच मुच् आज़ाद हैं?"

(पूरी कविता नीचे अनुशीर्षक में पढ़ें)

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23 JAN 2022 AT 16:45

"बरसों बाद, भूले बिसरे किस्से
रात ख़्वाब बन कर लौटे थे।
फ़िर सुबह तन्हा जगने से पहले
दिल कुछ सुकूँ के पल, जी आया था।"

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16 JAN 2022 AT 18:46

"उल्फ़त के समंदर में कुछ सवाल बड़े गहरे से हैं।
कहो मोह्ब्बत मुझसे या मेरे चेहरे से है?"

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3 JAN 2022 AT 0:48

"किसी की मोहब्बत में कसीदे ना पढ़ पाते तुम,
जो ज़माने में दिलजले शायर
आसुओं को अल्फाजों में ना पिरो रहे होते।"

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1 JAN 2022 AT 12:38

दिन बदलते रहें,
ये मौसम भी बदला।
तारीखें बदलती रहीं,
लो साल भी बदला।
रोज़ सवालों में घिरे,
कहीं हम बदलें क्या?
कहो हमारे बदलने से,
जवाबें भी बदलीं क्या?

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