छूना तेरे जिस्म को काफी रहा मुझे
हाथों की बात नहीं नासिर, लिबास खैर रहे,
तेरे दिलासे से मैं बहला रहा बहुत
फेहरिस्त में आगे होके भी हम ग़ैर रहे।-
☺️❤️✍🏼 Alfazo ke shehar me apka istaqbal hai
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मेरे किरदार की रुसवाई तेरे फसाने से हुई
न जाने कौन-कौन सी बुराई कब कहां से हुई
तू कलमगार है अल्फाजों को आज़ाद कर रहा है
बयान करनी चाही थी जो बाते तुझ से, वो ज़माने से हुई।
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हसरते उड़ी गुमान से और थक कर बैठ गई
खुशियों ने मारी नज़र बज़्म में और छुप कर बैठ गई
खुशनुमा एहसास से रब्त बस इतना सा है मेरा
उसे पिछली मोहब्बत याद आई और वो उसी दयार में बैठ गई।-
रोटी सिक सके तवे पे, इसलिए पैरों को धूप में जलाता हूं
बेटा जा सके स्कूल बस में, इसलिए मैं रिक्शा चलाता हूं।-
मै बुरा हूं मुझे बुरा ही कहिए
अच्छा बताते हुए तुम्हारी नज़रें रक्स करती हैं।-
तेरे जाने पर मैं ज़रा खुदगर्ज़ हो गया होता
नाशाद था मगर अपने हक में अगर कुछ कर गया होता
जिस तरह तुम इतनी मासूमियत से मुझे फना कर रही थी
मैंने खुद से थोड़ी मोहब्बत कर ली होती तो सब ठीक हो गया होता-
हां वो है जो संभाल लेगा मुझे
बस इस एक ख्याल ने मुझे रुलाया ज़ार-ज़ार
नसर, अफ़सुर्दगी-ए-ग़म का इलाज तो नहीं
फिर चारा-गर क्यों बुलाया जाए बार-बार ।-
हो जाऊं आज़ाद कैद से उसकी उसे ये गवारा नहीं
कर सकूं मुसलसल कोशिश मुझमें अब वो यारा नहीं।
yaaraa/यारा - courage-
नई दोस्ती अब एक पहेली है
आजकल तन्हाई मेरी सहेली है
अक्सर अब बैठती है आकर सिरहाने मेरे
मौका मिलते ही मेरी नफ़्स टटोलती है
मेरे जिंदा होने से बेचैन है वो
हर सांस हैरान परेशान है वो
मशवरा है तुम्हे मुझ सी बेहिस हो जाओ
जान को अपनी अबस रोग लगाती क्यों हो।-
मेरे ख़ल्वत में तू यूं खलल ना डाल
बैठा हूं सुकू में मुझे ना बाहर निकाल
यह दरिया है इसमें नशात,शादमानी,खुशी, सब डाल
जीनी हो पुर-असरार जिंदगी तो ग़म न निकाल।
ख़ल्वत- एकांत
पुर-असरार- जिस में कुछ राज़ या भेद हो-