Narendra Rajwansh   (©Naren®)
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Joined 27 February 2018


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Joined 27 February 2018
11 MAY 2021 AT 15:21

वो आंखों में मेरी आ कर गया,
बीच निंदिया की राहों में समझा कर गया।
ना ठहरा रातों के अंधेरो में पल भर,
मगर जिन्दा रहने की बाते बता कर गया।।
वो आंखों में मेरी आ कर गया।

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6 MAY 2021 AT 3:12

अब तेरे शहर से निकल रहा हूँ,
अब के अपने घर चल रहा हूँ।।

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17 APR 2021 AT 8:51

तू इस बदइंतजामी पे सिर्फ़ मज़लूम आँसू ही न बहा,
प्रण कर....! इन सुलगती मसानों की मिट्टियों पर,
कल हुक्मरानों से समाज के हक़ का हिसाब माँगेगा।

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13 APR 2021 AT 19:47

नौकरी खोजने निकला था घर से,
आज भी उसकी तलाश में जिंदगी गुज़र रहीं हैं।।

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13 APR 2021 AT 19:26

जब भी मुड़ कर,
अपनी दहलीज़ देखता हूँ,
ख़ुद में सवालों का अम्बार छुपाकर,
मुझें ख़ामोश दिखती हैं.

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23 JAN 2021 AT 11:38

ये बेरोजगारी भी क्या चीज़ हैं,
कोरोना वैक्सीन के दौर में भी,
ठहर जाने का नाम ही नहीं लेती हैं।

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7 JAN 2021 AT 0:47

मैं थोड़ा पढ़कर ज्यादा लिखने का आदी था,
अब पढ़ता तो हूँ पर लिखता नहीं।
लिखने से लोगों को ख़बर हो जाती हैं,
कहीं कुछ टूटा, बिखरा समान भी हैं।।

ख़ामोशी बड़ी अच्छी अदा हैं,
ज़िंदगी जीना सीखा देती हैं।।
😶🙄

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6 OCT 2020 AT 14:31

ऐ जिंदगी तुझसे शिकायत करू, या रहने दूँ।
अब तो पहचान तक,
मुझसे शुरू मुझपे ही ख़त्म हो रहीं हैं।
इस क़दर बिखरा हूँ अंदर तक,
कि अब तो आँखों ने भी बहने से इनकार कर दिया।
हम जी तो रहें हैं इक अरसे,
उनकी आंखों के इक ख्वाब के मुक़ाम की ख़ातिर,
वरना ज़िंदगी ने तो कब का इनकार कर दिया हैं।

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27 SEP 2020 AT 21:03

दूर सूरज कहीं तुझ बिन ढलने लगा हैं।
दर्द एड़ियों के सफ़र से चलने लगा हैं।।
तुम तक पहुँचता सफ़र बहुत वीराना था।
अब वीरान राहों पे राही भी मिलने लगा हैं।।
तेरी राह में पग, जिश्म, आश सब थक गए।
आख़िरी श्वांसों पे मेरा सफ़र भी चलने लगा हैं।।
दूर सूरज कहीं तुझ बिन ढलने लगा हैं।।।

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10 SEP 2020 AT 21:40

ज़िंदगी को आसान करते-करते;
विचारों के दरमियाँ खाई बन गयी हैं।
अपने समाज की सच्चाईयों से भगता था;
आज उसकी ही परछाई बन गयी हैं।
हमारे अतीत तरह आज में भी;
इक अजीब सी तन्हाई बन गयी हैं।

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