कुछ इस तरह से चांद हमारा है आधा मेरा, आधा अब भी तुम्हारा है, बादलों सी हमारी ज़िन्दगी हो गई है, ना घर है, ना ठिकाना है मुसाफिर हूं, राह है, पर मंज़िल से आज भी लापता फिर रहा!
तब एक आस थी, एक प्यास थी पर ना तुम थी, ना तुम्हारी याद थी अभी कुछ पन्ने अधूरे थे स्याही तुम्हारे पास थी पर जज्बातों में कुछ खामी थी कुछ किस्मत की भी मनमानी थी शायद यह कहानी किस्सों में ही रह जानी थी।