15 FEB 2018 AT 16:23

चाँद बन कर गुम रहे है कुछ आजकल
किसी दिन आफ़ताब बनकर निकला तो अपना वजूद  तलाशते रह जायेगे

मुझे बे'कार समझ रहे है जो लोग
किसी दिन कार से गुज़रा तो हाथ हवा में हिलाते रह जायेगे

क्रोध,अहंकार का बोझ लेकर उड़ रहे है आसमान में
किसी दिन जमीन पर गिरे तो चलने को भी तरसते रह जायेंगे

राशियाँ मिला कर ज़िन्दगी बिता रहे जो लोग
सामना किसी दिन तूफानों से हुआ तो ताबीज़ तलाशते रह जायेंगे

वोट लेकर हमसे हमको ही आँखें दिखा रहे है
किसी दिन होश में आये तो सियासत वाले देखते रह जायेगे

- Munish K Attri