मुकुंद शर्मा (गुरु जी)   (मुकुन्द राही✍️)
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Joined 18 June 2018


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Joined 18 June 2018

काश मेरा ये इक ख्वाब हकीकत हो जाए,
तुम्हें भी इक दिन मुझसे मुहब्बत हो जाए...

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मैंने ये सोच कर उसे माफ़ कर दिया "राही"
ये वही सख्स है जिसे हमने बेहिसाब चाहा था...

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मुझे हैरानी है मैं तुझे भूल क्यूं नहीं पा रहा,
आज कल तो मैं ऐतिहातन बादाम भी नहीं खा रहा..

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बस हमसे इतना सा गुनाह हुआ,
इश्क़ हुआ और बेइंतेहा हुआ,
उस एक सख्श के जाने से मेरी दुनिया छूटी जा रही है,
लोग कह रहे है एक सख्श ही तो गया फिर क्या हुआ..

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तारों से भरा आसमान देखने आया हूँ, अपना सारा जहान देखने आया हूँ,
उसके मोहल्ले ने मुझे आशिक़ का ख़िताब दे रखा है,
यार अभी रमजान है मैं तो बस चाँद देखने आया हूँ

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किसी और के आगे सर ना झुकाना पड़े बस इस ख्याल से,
मैं झुक जाता हूँ " मेरे महाकाल" के आगे....

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करके पूरा अपना हर सफ़र जा रहा हूँ
आँखे नम है आज मैं वापस घर जा रहा हूँ,

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लघु कथा : Score card:-
आज सुबह से ही हर्षित के घर में एक अलग ही तनावपूर्ण माहौल था, आज हर्षित का रिजल्ट था..
पापा को स्कूल बुलाया गया था, हर्षित के चेहरे पर चिंता की लकीर आसानी से देखी जा सकती थी, उसने अपना बेस्ट दिया था पर बाकी तो रिजल्ट ही बताएगा..
दोपहर 2:30 मिनट पर, हर्षित के पिता हर्षित की class incharge से मिले, कुछ क्षणों की बातचीत के बाद टीचर ने हर्षित का report card दिया.
हर्षित के हर average बच्चे के जैसे ही मार्क्स थे,
इतनी मेहनत, इतनी महँगी कोचिंग और इतना समझाने के बाद भी केवल 65%. पापा निराश थे, हर्षित असमंजस में था, उसके मन में केवल एक ही बात थी " इस से अच्छा था मैं पैदा ही ना होता, मेरी वजह से....."
आज उस बात को 20 साल बीत चुके थे, हर्षित एक कामयाब बिज़नेस चला रहा था और अचानक इसकी नज़र गयी उसे उसके उस रिजल्ट पर जो उसे "average" होने का एहसास दिला रहा था, हर्षित मुस्कुराया और शायद "score card " पर उसका तंज था ," तुम गलत थे"....
# provethemwrong

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रोक रखा था इक दरिया आँखों में अपने,
सैलाब उमड़ आया, जब उसने पूछा "खुश तो हो ना?"

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तेरा दिया एक एक काला ख्वाब लिखूंगा,
मैं अपनी बर्बादी पर एक किताब लिखूंगा...

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