Mukesh Gupta  
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दूनिया से बहुत दूर... हसरतों कि छाँव में,
आओ तुम्हें मैं ले चलूं... ख्वाबों के गांव में II
Joined 20 June 2017


दूनिया से बहुत दूर... हसरतों कि छाँव में,
आओ तुम्हें मैं ले चलूं... ख्वाबों के गांव में II
Joined 20 June 2017
22 FEB 2022 AT 1:08

खुदा की कसम क्या तमाशा रहा।
मैं समुंदर में रह के भी प्यासा रहा।।

कितनी खामोशीयां मेरे होंठों पे थी,
दिल मेरा शोर अंदर मचाता रहा।।

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8 FEB 2022 AT 5:24

इक दरिया है जो अश्को, का भरा रहता है।
इश्क का जख्म तो, ताउम्र हरा रहता है।।— % &

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1 FEB 2022 AT 23:34

फ़ितरतन बेवफा नही है वो,
कुछ अमीरो के शौक होते हैं...— % &

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14 NOV 2021 AT 17:14

तुम्हारा इश्क जिन्दगी है अगर...
तो मौत जिन्दगी से बेहतर है।।

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14 NOV 2021 AT 1:06

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता

तू छोड़ रहा है तो ख़ता इस में तिरी क्या
हर शख़्स मिरा साथ निभा भी नहीं सकता

प्यासे रहे जाते हैं ज़माने के सवालात
किस के लिए ज़िंदा हूँ बता भी नहीं सकता

घर ढूँड रहे हैं मिरा रातों के पुजारी
मैं हूँ कि चराग़ों को बुझा भी नहीं सकता

वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

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25 OCT 2021 AT 4:34

अब उम्र उनकी है दहलीज पर जवानी की,
मेरे अरमान है कि आप ही बहकने लगे।

छुआ है मैंने जबसे रेशमी उन जुल्फों को,
मेरे हाथ हैं कि खुशबू से महकने लगे।।

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25 SEP 2021 AT 17:21

मेरी जां उसके हवाले है, मैं क्या करू।
उसे सब चाहने वाले हैं, मैं क्या करू।।

जिस्म उसका है गुलाब की पंखुड़ियों सा,
और मेरे हाथ में छाले हैं, मैं क्या करू।।

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22 SEP 2021 AT 23:52

बड़ा एहसान हम फ़रमा रहे हैं
कि उन के ख़त उन्हें लौटा रहे हैं

नहीं तर्क-ए-मोहब्बत पर वो राज़ी
क़यामत है कि हम समझा रहे हैं

यक़ीं का रास्ता तय करने वाले
बहुत तेज़ी से वापस आ रहे हैं

ये मत भूलो कि ये लम्हात हम को
बिछड़ने के लिए मिलवा रहे हैं

तअ'ज्जुब है कि इश्क़-ओ-आशिक़ी से
अभी कुछ लोग धोका खा रहे हैं

तुम्हें चाहेंगे जब छिन जाओगी तुम
अभी हम तुम को अर्ज़ां पा रहे हैं

किसी सूरत उन्हें नफ़रत हो हम से
हम अपने ऐब ख़ुद गिनवा रहे हैं

वो पागल मस्त है अपनी वफ़ा में
मिरी आँखों में आँसू आ रहे हैं

दलीलों से उसे क़ाइल किया था
दलीलें दे के अब पछता रहे हैं

तिरी बाँहों से हिजरत करने वाले
नए माहौल में घबरा रहे हैं

ये जज़्ब-ए-इश्क़ है या जज़्बा-ए-रहम
तिरे आँसू मुझे रुलवा रहे हैं

अजब कुछ रब्त है तुम से कि तुम को
हम अपना जान कर ठुकरा रहे हैं

वफ़ा की यादगारें तक न होंगी 
मिरी जाँ बस कोई दिन जा रहे हैं 

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18 SEP 2021 AT 1:28

ज़माने की दौलत ना जर चाहती है।
तुम्हे देखना बस नजर चाहती है।।

इबादत में मेरी तुम महसुस हो बस,
दुआओं में इतना असर चाहती है।।

To be continued...

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11 SEP 2021 AT 17:01

मुहब्बत के दिलकश वो नजारे कहां गये।
वो चांद कहाँ है, वो सितारे कहां गयें।।

कहते नहीं थकते थे, हमें लोग जो अपना,
हम तो यहीं खड़े हैं, हमारे कहाँ गये।।

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