mukesh Patel   (मुकेश पटेल)
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Joined 25 November 2017


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Joined 25 November 2017
3 JUL 2023 AT 16:23

अंत-अनन्त, एक समान,
अधर अधूरी, बिन अनुभव ज्ञान,
तर्पण ,दर्पण ,स्नेह समर्पण ,
मोह-विवेक बिन, व्यर्थ प्राण,

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16 MAY 2021 AT 22:10

अनर्गल बातें, बंदिशों में ख़्वाबें,
अधर में ज़िन्दगी ,जटिल होती राहें,

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5 MAY 2021 AT 0:28

करवटों में रात गुजरी,
सिरहाने पर कलम थमा रहा,,
ये कैसा दौर ज़िन्दगी का...
हर पल उलझन बना रहा,,


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1 DEC 2020 AT 10:56

वक़्त की जो धार है,
बिन म्यान के तलवार है,,
कभी लहरों से रूबरू,
तो कभी हाथों में पतवार है,,

रुक नहीं तू ,थम नहीं,,
क्यूँ करता खुद को कमजोर है,
शेर है, समशेर है,
अपने वजूद में ......
तू करता सबको ढेर है,,

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26 AUG 2020 AT 22:49

वो पल ,अब कल हो गया,
जो आज है ,वो अचल हो गया,,

आज थका नहीं हूँ, गिरा नहीं हूँ,
फिर क्यूँ? कदम मेरा दुर्बल हो गया,,
उस पल की मुझे बल चाहिये,
यूँ, बेमंजिल मैं निर्बल सा हो गया,,

राह बाधित है, मंजिल धुँधला है,
पर संकल्प मेरा ,अब और अटल हो गया ,
यूँ कैसे थक जाऊं किसी मोड़ पे,
क्या वक़्त ये अचल हो गया??

वो पल ,अब कल हो गया ..

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12 AUG 2020 AT 10:25

मुशायरा,गजल,हर पहलू जिंदगी के,
तुझसे सुना,तुमसे ही सीखा है,,

ढूंढेंगे.....
हिंदी,उर्दू के शब्द तुझे,
आखिर इन अल्फाजों का तुझसे रिश्ता जो अनोखा है,,

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11 AUG 2020 AT 23:29

ऊँची इमारतें, सुनी सी गालियां,
बन्द दीवारों में घुटन सी हो रही है,,
ये वक़्त की कैसी तासीर है,
जो चुभन सी हो रही है,,

ये कैसा मोड़ है ज़िन्दगी का,,
हर पल उलझन सी हो रही है,,
ना थमी प्रकृति ,ना रुकी नदियाँ,
पर क्यूँ?
भविष्य की राह में अड़चन सी हो रही है,,

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8 AUG 2020 AT 20:55


वक़्त का पहिया घुम रहा ,
मानव रूपी प्यादा थम सा गया हो,,
मानो बहती नदी की ऊपरी परत,
बर्फ की चादर ओढ़े सो गया हो,,

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26 JUL 2020 AT 12:43

बैठ कर होती थीं ठिठोलियाँ कई,
इजहार,इकरार,और तकरार सभी,,

गुम सा हो गया वो पल कहाँ...
ये,, वो इतवार तो नहीं,,



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25 JUL 2020 AT 20:14

चारों तरफ सन्नाटे हैं,
दूर कहीं मंजिल का किनारा है,,

बन्द हैं सब अपनी ही किवाड़ों से,
बस चन्द याद भरे लम्हों का सहारा है,,



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