तेरे नाम के तीन अक्षर,
मेरी उँगलियाँ,
अक्सर उकेरा करती हैं...
दिन के उजाले से पहले
ये किरणे,
तेरी यादें बिखेरा करती हैं...
झरते हैं अक्सर,
मेरी आँखें से,
बीती यादों के लम्हे...
कितनी अनकही बातें,
मेरे स्मृतिपटल में,
मुझे दिन भर घेरा करती हैं...
~ प्रभजोत कौर-
एक देखा था मैने,
नादाँ सा चेहरा,
आँखें मासूम,
होंठों पे मुस्कान लिए,
ऐसा था उस शैतान का चेहरा।
तुम अक्सर काले को बुरा,
और गोरे के गुणगान करते हो...
उजले को अच्छा,
अंधेरे को बदनाम करते हो...
औरत को ममता की मूर्त,
और पुरुष को...
.................हैवान करते हो।
अफसोस मगर,
यूँ आती नहीं बुराई नज़र,
बहुत दिलकश होता है अक्सर,
दिल-फ़रेब, बेईमान का चेहरा।
एक देखा था मैने,
नादाँ सा चेहरा,
आँखें मासूम,
होंठों पे मुस्कान लिए,
ऐसा था उस शैतान का चेहरा...
~ प्रभजोत कौर
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जिंदगी का कभी कभी,
यूँही हसीन हो जाना...
कभी रंगहीन होने से,
इसका यूँ रंगीन हो जाना...
मौत की दस्तक से पहले,
जीने की चाह होती है जैसे,
मेरे गुनाहों का और भी
देखो यूँ संगीन हो जाना...
फना होना अपना इश्क़ में,
जान, तय है कुछ यूँ,
जु ख़िज़ाँ में पत्तों का,
गिर कर ज़मीन हो जाना।-
मेरी दुआ है,
तुम पेड़ सरीख हो जाओ,
जड़ें जमाने को गहरी ज़मीं मिले कहीं,
कभी ऊंचे, नीले, आसमाँ में छाओ,
किसी परिंदे का तुम पर भी आशियाना बने,
किसी थके राही को तुम सुला पाओ,
सुनो,
मेरी दुआ है,
किसी ज़मीं में तुम दबो तो सही,
बीज हो तुम, अब हरे हो जाओ!-
मैं अक्सर
ख़ुद को,
टुकड़ों में रख कर भूल जाती हूँ,
मैं माँ हूँ,
बेटी भी हूँ,
पत्नी और बहन में बँटी भी हूँ,
मैं प्रेमिका हूँ,
मैं ख़ुद प्यार हूँ
बस शब्दों में रहती हूँ,
मैं ब्रह्म सी निराकार हूँ......-
नींद के बोसे से बोझल,
पलकों के किनारे पे,
आज फ़िर मैं ख़्वाब धर लूँ,
दूर किसी सितारे के,
बरसों से जो इक नमी,
बस रही है आँख में,
आ किसी काग़ज़ पे लिख दूँ,
तेरे काँधे के सहारे से...
नींद के बोसे से बोझल...-
ओ प्रवासी पंछी,
कैसा लगता है विदेशी होना?
एक देश में घर बना कर,
दूर कहीं पर जाकर सोना...
तुम भी तरसते हो त्योहार को क्या,
मिट्टी की खुशबू से है आता रोना?
कभी गरम, कभी सर्द,
होते है जज़्बात सभी क्या...
कैसा लगता है कुछ पाकर,
सब कुछ खोना!
ओ प्रवासी पंछी...-
ख़ामोश अल्फ़ाज़ मेरे, आवाज़ तो करते हैं,
मुझे कुछ कहना है, की फरियाद तो करते हैं,
खामोशी में फ़िर भी, उलझी मेरी काया है,
औरत के मन की, कब कोई सुन पाया है,
दूर नहीं वो दिन भी, जब जंजीर ये टूटेगी,
मैं नहीं, तो मेरी बेटी सही, जा दुनिया को जीतेगी।-
दिल के दुखाने को यूं तो फसाने बहुत है,
चलो आज मुस्कुरा के याद तुम्हे कर ले,
फ़िर रोने रुलाने को तो बहाने बहुत हैं!
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देख कर दुनिया के रंजो गम,
अब ऐ ख़ुदा तुझ पे ऐतबार कुछ कम है,
जलते है मजलूम उम्र भर रोटी के लिए,
और गुनहगारों के महल होते हर दिन रोशन है।
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