Mrbenaam  
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Joined 14 April 2018


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Joined 14 April 2018
16 MAY 2022 AT 22:39

भटक मैं गया अपनी ज़िंदगी के सफ़र में
जहाँ भर को रास्ता दिखलाए जा रहा हूँ
उसे बता दिया उसका घर है उस गली में
मुझे ख़ुद नहीं मालूम मैं किधर जा रहा हूँ

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15 MAY 2022 AT 20:41

मैं अपना दिल न देने का ग़ुरूर लिए रहा
यही थी वज्ह ता-उम्र यही दिल लिए रहा

रू-ब-रू न हुआ दिल कभी दिल वालों के
भले ही इन गलियों में महफ़िल लिए रहा

चाँद ख़ुद चले आया इस दिल के ख़ातिर
इक दिल का मातम इक ज़िल लिए रहा

एक भी नौका नहीं हुई दिल के उस पार
मैं था पानी का महबूब साहिल लिए रहा

कोई चेहरों पर फ़ना हो बाँट देता है दिल
मैं दो आँखों में एक ही मंज़िल लिए रहा

ग़ैरों के हाथों न हुआ इस दिल का क़त्ल
बेनाम दिल में दिल का क़ातिल लिए रहा

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10 MAY 2022 AT 7:58

इस ज़िंदगी से निमट जाएगा इक दिन
मेरा साया भी सिमट जाएगा इक दिन
बराबर की मोहब्बत कौन देता है यहाँ
मैं ख़ुद ही को लिपट जाएगा इक दिन

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9 MAY 2022 AT 22:57

मैं तेरे शहर का परिंदा नहीं हो सकता
अपने गाँव से शर्मिंदा नहीं हो सकता
तुम तो नोच लेते हो आदमी को भी
माँ क़सम मैं ऐसा दरिंदा नहीं हो सकता

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8 MAY 2022 AT 22:52

इन शहर की गलियों में माँ मैं रोज़ लरज़ता हूँ
अच्छा होता गाँव में होता मिलने को तरसता हूँ

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3 APR 2022 AT 20:02

किसी राहगीर से पूछो रास्ता निकलता नहीं है
आजकल शख़्स कोई हँसता निकलता नहीं है

हयात मैंने बूढ़ा होकर स्कूल जाने की है ठानी
इस लम्हा कंधे मेरे से बस्ता निकलता नहीं है

ख़र्च हो रही है ज़िंदगी उधार के पैसों की तरह
ऐ आदमी दिन जस्ता जस्ता निकलता नहीं है

काँच के आइनों में कौन मोहब्बत दिखाए अब
इन कानों से ऐनक का दस्ता निकलता नहीं है

वो एक अहद था उम्र थी मिलते थे ढेरों गुलाब
अब किसी तोहफ़े से गुलदस्ता निकलता नहीं है

बेनाम की मौत पर देख लेना हृदय के टूकड़े
कहोगे इतना भी दिल शिकस्ता निकलता नहीं है

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30 MAR 2022 AT 17:02

एक कनीज़ भी चाहे है मोहब्बत
अब तू ही बता, बता करूँ

जानता हूँ ख़ता है मोहब्बत
मोहब्बत-ए-ख़ता, ख़ता करूँ

हराती है हर किसी को मोहब्बत
मैं एक शख़्स फ़ता, फ़ता करूँ

उल्फ़त करूँ वो भी उँगलीयों पर
हूँ आशिक क्यूँ जता, जता करूँ

बेदिली से कहो वो भी मुड़कर देखे
जिसे प्रेम ख़ुद को सता, सता करूँ

दर्द मेरा बढ़े है किसी के गानों से
सुन देर रात लता, लता करूँ

कौन पता देगा मुझे सही पते का
अब किस से पता, पता करूँ

बेनाम-ए-अक्स किस को है नसीब
तुझ पर ज़िंदगी अता,अता करूँ

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28 MAR 2022 AT 9:44

ग़म की भी कोई सूरत होती
रूठी सी कोई मूरत होती
मैं जाता गले लगा लेता
जिसे भी मेरी ज़रूरत होती

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26 MAR 2022 AT 9:47

आज शीशा फिर तड़क गया
समाँ ये मुझे सँवरने नहीं देता

ग़ैरों की ख़ुशी में ख़ुशी चाहूँ
ग़म मेरा मुझे उभरने नहीं देता

वो डूबा कर ख़ुश है मुझे पानी में
सगा भी हो भले तरने नहीं देता

ख़ुद के आसूँओं में रो डूब मरूं
मल्लाह समंदर में उतरने नहीं देता

काँच जैसा हो गया मेरा रुतबा
अपनी गली में वो बिखरने नहीं देता

जब कभी आया रोना क़िस्मत पर
रूमाल चश्म-ए-तर भरने नहीं देता

मुझे रोग लगाने वाला निकला मुरीद
होता गर ख़ुदा भी मुकरने नहीं देता

बेनाम वो तुझे गले भी लगाएगा
जो शख़्स पास से गुज़रने नहीं देता

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22 MAR 2022 AT 23:09

हँसते हुए लाँघ आया बाज़ार खिलौनों का मगर
घर आकर आब-दीदा हुआ बचपन को याद कर

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