monika kakodia   (✍Monika kakodia 'बेबाक शायरा')
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Joined 13 January 2018


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20 MAY 2021 AT 19:09

मैं अपने भाव लिखने की इच्छा में
हमेशा
लिख देती हूँ तुम्हारी अभिव्यक्ति
और तब
ज़रा देर नहीं करती
मेरी कविताएँ तुम्हारी होने में

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17 MAY 2021 AT 17:12

तुम्हारी मुस्कुराहट
मानो अधरों पर
खिल गए हैं
कवँल अनेक
अनगिनत चन्द्रमा
आ बसे हों
एक बसेरे में
तुम्हारे अधरों के
किनारों पर पड़े हुए
उस गड्ढे में
एक बह्मांड आ गिरा है
मुस्कुराते हुए
सिकुड़ी हुई
आँखों की पुतलियाँ
छिपाए हुए हैं
कोई रहस्यमयी खज़ाना
हृदय को मानो
मिल गया हो
रहस्य मोक्ष प्राप्ति का

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7 MAY 2021 AT 12:18

वक़्त नहीं है , कहने वाले
इक दिन खाली वक़्त में सोचेंगे
कहाँ गए वो ,रिश्ते सारे
कहाँ गई वो घड़ियाँ चार
छिपे कहाँ वो अपने प्यारे
कहाँ लापता जिगरी यार
और फिर हाथों पर हाथ रखे
फिर से वक़्त को कोसेंगे
वक़्त नहीं है , कहने वाले
इक दिन खाली वक़्त में सोचेंगे

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3 MAR 2021 AT 11:06

जो हारने के बाद बहाने बनाना नहीं जानते

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20 AUG 2020 AT 10:41

ज़िंदगी की गुल्लक में,यादों की बचतें हैं
नोट कुछ पुराने हैं, कुछ खुल्ले सिक्के हैं
कुछ जो जमा किए थे खुशियों के बस्ते से
कुछ दर्दों के टुकड़े हैं जो मिले थे रस्तों से

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17 AUG 2020 AT 9:47

मिलते हो
आजकल तुम मुझे
बारिश में नहीं,
उसके बाद वाली
चटकीली धूप में
जो सोख लेती है
सारी सीलन को
कहीं अपने भीतर

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13 JUL 2020 AT 12:22

"जिसे चुन कर सभी ने
काटा सपाट सफ़र
ज़िंदगी के उस मोड़ पर
मैंने ठहरकर
नए मोड़ को तलाशना
तय किया
कंकरीट के नए मोड़ पर
मैंने खोजे बहुत से नए अनुभव"

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13 JUL 2020 AT 11:37

"तुम सुंदर हो"
ये कहते हुए
उसके पैमाने
क्या रहें होंगे

वो देखता होगा
मेरे बदन के
घुमावों को
या वो देख चुका
मेरी आत्मा के
गहरे, हरे जंगल

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15 JUN 2020 AT 14:01

मुझे अर्ध ही लगता है पूर्णिमा का चाँद भी
कुछ अधूरी सी गुज़रती है पूरी रात भी
उँची दीवारें हैं मेरे घर की ऊँची इमारत की
किरणें कुछ कम सी मिलती हैं सुबहो-शाम की

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12 JUN 2020 AT 20:16

मेरे भी कई ख़्वाब थे
जो पल रहे थे आँख में
अभी बने थे घर नए
जो जल रहे थे आँच में

अपमान में पला बड़ा
मैं मरा नहीं हूँ बोझ से
नित नया कोई युद्ध है
मैं डरा नहीं तेरी सोच से


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