आज का धर्म आपको ज़ाहिल बनाता है इसलिए किसी भी धर्म का कट्टर अनुयायी होना इंसायिनत के लिए घातक है। बह्मांड को चला रही शक्ति को कोई रूप देना ज़रूरी नहीं बल्कि मन में ऐसी शक्ति को मान लेना ही काफ़ी है। क़िस्म क़िस्म का दिखावा कभी कोई भक्ती हो ही नहीं सकती, हाँ अग़र आप ईश्वर अल्लाह के नाम से शुद्ध होते हैं तो पूजा सजदा करने में कोई हर्ज़ नहीं। किसी रूप को चाहें मत मानो, ना पूजा करो कोई हर्ज़ नहीं, हाँ मग़र निरादर करना भी ग़लत है। भजन नास्तिक भी सुने तो कोई हर्ज़ नहीं, संगीत कानों को अच्छा लगता है। क़दम कभी किसी दरगाह, मस्ज़िद, मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा थम जाए तो कोई हर्ज़ नहीं लेकिन भगवान समान मातपिता और गुरू को ही भूल जाओ तो वो ग़लत है। शुद्ध ही होते हो अग़र आप शक्ति को याद करने से तो कोई हर्ज़ नहीं लेकिन तेज़ आवाज़ों में अज़ान, जागरण, कीर्तन कर दुनियाँ को जगाओ तो वो ग़लत है।
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