चौखट पर बैठी है शाम ढलने के वास्ते,परवाने भी मुन्तज़िर है अब जलने के वास्ते,कोई शमा तो जले कोई रात तो आये,कब से बेचैन बैठे है उनसे मिलने के वास्ते। - BADTAMÊĒZ
चौखट पर बैठी है शाम ढलने के वास्ते,परवाने भी मुन्तज़िर है अब जलने के वास्ते,कोई शमा तो जले कोई रात तो आये,कब से बेचैन बैठे है उनसे मिलने के वास्ते।
- BADTAMÊĒZ