पलकों पर बैठाया था तुझे फिर भी, क्यु आज ये दिल अकेला है तडपता है ये , शायद कुछ कहना चाहता है तुझे पर क्या करू अब तो मेरा साया भी अकेला है एक एक कर सबने साथ छोड़ दिया मेरा अब बस इस जिस्म मे मेरी भटकती रूह का बसेरा है पल पल दम घुटता है मेरा पर जनता हूँ अब कोई नहीं यहा जो मेरा है