Mohit Kothari   (मोहित कोठारी)
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Joined 21 August 2017


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25 MAR AT 0:03

ए ज़िंदगी किसी दौर में मैं तुझे मज़े से जी रहा था,
आज तेरे ही दिए उन ज़ख्मों का दर्द पी रहा हूं ।
कुछ चीरे इतने गेहरे लगे थे सीने में,
जिनको आज भी खुद ही टांक टांक कर मैं सी रहा हूं ।

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24 MAR AT 13:37

ये मंज़र ज़रा धुंधला सा है, के अंधेरा मेरे दुधला सा है ।
इन हाथों में उनकी धूल रह गई, जो यादें कहीं अब भूल सी गई ।
के दिल को अब वो सदा कचोटती है, सीने से ज़ख्मों को खसोटती है ।
वो बचपन कहीं पीछे छूटा, कहीं बिछड़ गया मुझसे वो गांव ।
इस शहर की दौड़ में भागते भागते, अब थकने लगें हैं पांव ।
मुरझाए चेहरे, झुके कंधे, ढूंढ रहें है कुछ पल की छांव ।
इन ठोकरों से लगे, इस दिल पर, ना जाने कितने ही घाव ।
कहां गए वो पल सुकून के, क्यों दौड़ रहे है पीछे इस कदर जुनून के ।
के कब रुकना है, कहां ठहरना है, किसी मंज़िल की कोई ख़बर न है ।
अब कितना टूटना और बिखरना है, क्या ऐसे ही मुझे निखरना और संवरना है ।
खुद ही गिरना और संभालना है, नहीं रुकना, बस अब चलना है ।
चाहे तपना और जलना है, अब तो कुछ बड़ा हमको कर गुजरना है ।

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24 MAR AT 13:10

हो उजली अंधेरी पूनम की रात,
चांद तारों की हो सजी बारात,
और घंटों तक होती अपनी बात,
बस ऐसा हो तुम्हारा मेरा साथ,

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24 MAR AT 12:13

रंग बिरंगे रंगों का, आज लगा है जहां में मेला ।
रंग भस्म, रंगे मन मेरा, या रंग श्याम, रंगे मन तेरा ।
जिस रंग भी ये मनवा रंगले, बस मन में रहे भक्ति का डेरा ।
मन ही हो अपना काशी काबा, और हर काली रात का उजला सवेरा ।
रंगों का ये त्यौहार है आया, संग अपने ये कई खुशियां लाया ।
काशी में होली खेल रहे शिव शंभू, और मसाने में उनके भूतों का टोला ।
वहां ब्रज, बरसाने में, कान्हा, गोपियों का भिगो रहे हैं चोला ।
बस ऐसे ही रंगों की सौगात प्रभुजी, तुम हर बरस ले आना ।
कोरा ना रह जाए कोई, सब पर अपना रंग चढ़ाना ।

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23 MAR AT 15:08

वो वक्त कोई और था,
ये वक्त कोई और है।
वो वक्त एक गुजरा ज़माना था,
ये वक्त एक नया दौर है।
उस वक्त का लम्हा ठेहर गया,
इस वक्त में केवल दौड़ है।
उस वक्त का रस्ता सीधा था,
इस वक्त में केवल मोड़ है।
वो वक्त सब पलों का दरिया था,
ये वक्त बस चंद पलों का छोर है।
वो वक्त एक शांत समंदर था,
ये वक्त बस लहरों का शोर है।

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20 MAR AT 18:43

ग़म ए फ़िरदौस को,
क्या कभी जाना किसी ने।
मिलने क्यों ना आई घटा कोई,
क्या कभी पूछा किसी ने।
इस हिज्र में मुरझाईं, जो कलियां उन्हें,
क्या कभी सींचा किसी ने।
क्यों विरान पड़ा था गुलिस्तां, इस क़दर,
क्या कभी समझा किसी ने।
नेमत उस खुदा की हम पर थी,
कर्म हमारी कलम पर था।
के हम बयां इसे शब्दों में कर,
काग़ज़ के पन्नों पर उकेर पाए।
वरना इस बेजुबां उजाड़ बंजर को,
कभी फ़िरदौस कहां था समझा किसी ने।

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8 MAR AT 12:55

जब साथ शंभू का, तो मन किसी का कभी कहां डरा है ।
बस पाना है शंकर को, अभी इतने में ये मन कहां भरा है ।।
ये देवों के है, दानव के भी, ये ही तो सारे मानव के भी ।
ना छल-कपट ये कोई करे, ना भेद किसी में माने कभी ।।
मन भोले सा बन ना सका, पर कोशिश पूरी जारी है ।
भेद किसी में करा नहीं, अपनी भी सबसे यारी है ।।
दुनियाँ को हम चाहे हो ना हो, हमको ये दुनियाँ प्यारी है ।
भोले के दर पहुंच कर जो आए, वो भावना सबसे न्यारी है ।।
मैं भोले का भोला मेरे, इस जग से फिर क्या लेना है ।
जो त्याग दिया वो त्याग दिया, सर्वस्व दान में देना है ।।
आओ हम भी शिव जैसे बने, कर्म सुधारें।
कभी किसी में कोई भेद ना करें ।।

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8 MAR AT 12:17

जीवन तो मोह माया के पाश में बंधा हुआ एक भ्रम है ।
छूटे जो इस फंद से, केवल उसे ही मिलता ब्रह्म है ।।
भले ही मूंदे नेत्र, सदा शिव ध्यान में रहे ।
पर जग की हर खबर, मेरे शंकर को रहे ।।
ये भोला मेरा बाबा, चाहे भोला बड़ा है ।
पर हर मुश्किल में, मैं जानूं ये सबके साथ खड़ा है ।।
ये शंभू मेरे, भंडारी है, ये महाकाल, त्रिपुरारी है ।
अपने ही अश्रुओं की माला जिन्होंने, अपने कर पे धारी है ।।
ये भुजंग भूषण, अवघड़ी, ये ही तो कपाली, कंसारी है।
जिन्होंने पतित पावनी माँ गंगा, अपनी जटा में धारी है ।।
ये पिनाकधर, ये कपिलेश्वर, ये आशुतोष, ये पिंगलेश्वर, ये सोमनाथ है भस्म रमैया ।
ये चंद्रमौली, ये दिगंबर, ये संगहारक, ये भूतेश्वर, जो जीवन नईया के है खिवैया।।
ये शमशान के अघोरियों के इष्ट, ये ही है सर्वोत्तम, ये ही तो सर्वश्रेष्ठ है ।
ये देवाधीदेव, ये महादेव, जो सब देवों में जेष्ठ है।।

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15 FEB AT 10:31

ना ही इश्क़ हैं उनसे,
ना इस बात का किसी से ज़िक्र,
ना ही कभी किसी से इज़हार करते हैं ।
हां माना अपने हर वादे से यूं ही मुकरते है,
और हर बात पे उनके केवल इनकार करते हैं ।
न कभी किसी बात पर इकरार,
न किसी बात पर हम उनका एतराम करते हैं ।
नफ़रत का पुलिंदा हैं कितना लंबा,
आज हम ये ऐलान सरेआम करते है ।

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15 FEB AT 10:23

वो रौनकें, वो हसीं उजाले, वो खुशियाँ,
यूं ज़िंदगी के अंधेरों में कहीं खो गई ।
हम जो कभी महफिलों, बज्मों की शान थे,
वो हस्ती हमारी, इस ज़ीस्त में अब तन्हा हो गई ।

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