MOHD SHAKIR KHAN   (शाकिर देहलवी)
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बकौ़ल उनके मैं ग़ज़लें कमाल लिखता हूँ
वो बे-ख़बर हैं उन्हीं का जमाल लिखता हूँ
Joined 11 March 2019


बकौ़ल उनके मैं ग़ज़लें कमाल लिखता हूँ
वो बे-ख़बर हैं उन्हीं का जमाल लिखता हूँ
Joined 11 March 2019
30 NOV 2022 AT 6:07

तुम पलटते तो देखते शाकिर
उसने मुड़कर दोबारा देखा था

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31 JUL 2022 AT 22:48

मांग कर शायरी से कुछ मोहलत
अपना घर बार देखना है मुझे

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30 JUN 2022 AT 10:48

कोई दिलबराना ग़ज़ल कह रहा है
ये मौसम सुहाना ग़ज़ल कह रहा है

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16 JUN 2022 AT 20:28

हमारी बस्ती से लश्कर ये कह के लौट गया
चलो यहां से यहां सरफ़रोश रहते हैं

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16 MAY 2022 AT 8:07

हमारे घर में ये तहज़ीब अब भी ज़िन्दा है
बुज़ुर्ग बोलें तो बच्चे ख़मोश रहते हैं

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31 JAN 2022 AT 1:06

ग़म है क्या,क्या खुशी,समझता हूं
तुझको ऐ ज़िन्दगी,समझता हूं

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30 JAN 2022 AT 11:16

उसने जाते हुए जब मुझको पलट कर देखा
मैंने उन झील सी आंखों में समन्दर देखा

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1 APR 2019 AT 8:52

तुम्हें भी भीड़ से डर लगता है
मुझको भी इश्क़ है तन्हाई से

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10 JAN 2022 AT 22:21

अब ये दर उस पे खुल नहीं सकता
उस से कह दो कि दूसरा देखे

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22 DEC 2021 AT 21:01

मैं जिसकी याद में खोया हुआ था
वो मेरे रू-ब-रू बैठा हुआ था।

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