कविता शब्दों का एक जाल है
जो समझ गया वो कमाल है!
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छात्र-( अंग्रेजी साहित्य)
लखनऊ विश्वविद्यालय
कदमों पे है! यकीं तो ये वसवसा कैसा!
एक दिन मंजिल भी आके कहेगी तेरा ये मुसलसल सिलसिला कैसा !-
जिस बात का डर था वो तो हुआ नही
तुमने किया था वादा मिलने का पर वो
तो पूरा हुआ नहीं
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जब तलक तुम मेरे साथ थे
अच्छे मेरे अखलाक थे
कई अपने , कई गैर भी मेरे साथ थे
जब तलक तुम मेरे साथ थे-
लोगों की बहोत सी है अलग-अलग कहानी
युवाओं की बस एक ही कहानी
हे नौकरी महरानी
हे नौकरी महरानी
तू है जैसे राजा या है रानी
युवा करे इन्तजार तुझसे मिलने का जैसे हो रातरानी
हे नौकरी महरानी
हे नौकरी महरानी
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ना वक़्त बदला ना लोग
बस बदले उन्के लफ्ज़ और लहजे हैं!
क्या कहुँ उनको जो खुद गए गुजरे हैं
ना ही उनमें शर्म बची है ना ही उनमें लज्जे हैं!-
अगर कोई सवाल है
तो उसका जवाब भी होना चाहिए!
मैं मानता हूँ कोई गुजरा है इधर से
पर फिर भी उसके कदमों के निशान होने चाहिए!
दाग लगाये हैं जमाने ने बहोत से उसके किरदार पे
भले ही वो ना था शामिल किसी जुर्म में
,अगर था शामिल जुर्म में तो उसके कदमों के निशान होने चाहिए!-
तू रुक आके बैठ यहाँ
मैं तुझे कुछ बताना चाहता हूँ!
तू आके बैठ यहाँ मैं तुझे हँसाना चाहता हूँ!
तुझे हँसता देख मुस्कुराना चाहता हूँ!
तुझे हँसता देख अपने सारे गम भुलाना चाहता हूँ!
तू आके पास बैठ तो सही मैं लोगों को इशारों में कुछ बताना चाहता हूँ!वो देख के जलते हैं तुम्हें मेरे पास
आओ बैठो तो सही मैं उन्हें जलाना चाहता हूँ!
तू कहे तो मैं तुझसे दूर जाके बैठ जाऊंगा!
बस तुझे अपने पास बैठा देखना चहता हूं!
तेरे आँखों में खुद को देख कर तेरे आँखों से तेरे दिल का हाल जानना चाहता हूँ!
तूने सुना है बहोत कुछ मेरे बारे में
वो सब गलत है तू आके बैठ तो सही मैं तुझे सच बताना चाहता हूँ!-
होती हो सामने हर एक बार मेरे सपनों में
अगर हो सामने तो क्या बात है!
हाँ सुना है अपना नाम कई बार तारीफों में तुम्हारी!
पर मेरे कुछ अहसास अगर बाकी हों तुम में तो क्या बात है!-