MOhaNi dEshMuKh   (Alfaz_MD)
4.1k Followers · 34 Following

read more
Joined 1 October 2017


read more
Joined 1 October 2017
YESTERDAY AT 0:35

"बेटियां"
घर की लक्ष्मी, आंगन की तुलसी,
मां बाप की जिम्मेदारी,
परिवार का मान, समाज की मर्यादा, पराया धन,
कुलदीपिका, या कोई कविता,
या किसी कहानी की तुकबंदी होती है!
जो गढ़ी जाती है कवि की उलझनों के अनुरूप।

और कवि कौन है?
हर वह शख्स जो स्त्री के इर्द-गिर्द स्याही लिए खड़ा है।

और स्त्री खुद क्या बनना चाहती है?
नहीं जानती! या शायद जानकर भी भूल जाती है!
क्योंकि चार लोगों में से दो अपने घर के है,
तीसरा समाज है, और चौथी वह खुद,
बन जाती है या बना दी जाती है.... खैर....

और मैं कौन हूं?
यह मायने नहीं रखता... 'मोहिनी!'
जाने दो।

-


1 APR AT 23:54

ज़हन में दबा है हर दर्द,
किसी से नहीं कह पाता हूं!
मैं बेरोजगार घर लौट कर,
और भी अकेला हो जाता हूं....

-


27 FEB AT 21:48

"EVENING"

The day was hot, now it's the air
changing the temp,and getting cooler,
passing by me, I felt it everywhere,
a voice I heard, whispers in my ear,
"If searching the peace, it's nowhere
just sit besides me, and look inside your"

Aah! It's mesmerizing, sun in the horizon
Take some rest, your all works done.
feel the beauty of nature within you,
this is the time, it's bill will be due.
you think you can return the amount,
no dear! these favours, you can't count

so just sit with yourself, and do nothing,
nothing to harm the nature, is the only thing!
nature finds it's way of living,
don't mess with it, and enjoy your doing.

-


24 FEB AT 13:40

मां तुमने गुज़ार दी ज़िन्दगी सारी, निभाने को एक बेमेल शादी,
और मुझे भी कर दिया मजबूर, दोहराने, ज़िंदगी तुम्हारी।
क्योंकि तुम्हारी मां भी ब्याही गई थी, बिना मर्ज़ी खुशी-खुशी
प्यार, परवाह, सम्मान बिना, यह रीत सम्मानित, बेहद पुरानी।

लेकिन मैं अपनी बेटी को, आदर्शवाद में बांधूंगी नहीं,
प्यार को जाति से तौल कर, समाज की सोच मानूंगी नहीं।
मैं नहीं दूंगी उसे मर जाने, या मार दिये जाने की धमकी,
उसके अच्छे-बुरे, सही-गलत में, मैं उसे संभाल लूंगी।
मैं नहीं थोपूंगी अपनी लाडो पर अपनी हर पसंद,
उसकी जिंदगी, शादी, और आज़ादी, होगा उसका हक़।

मैं तब हार गयी थी, मगर अब जीत कर दिखाऊंगी,
वादा है मां! मैं मेरी बेटी ज़बरदस्ती नहीं ब्याहूंगी।

-


19 FEB AT 23:59

खूंटी पर टांग कर ख़्वाब सारे ,
तेरी आंखों से आंसू चुरा ले जाएगा !
दुनिया के इंतख़ाब में रोज़-ब-रोज़ ,
तू चेहरे कितने ही बदल पाएगा ?
एक मुसाफिर निकला है वफा ढूंढने ,
उस राह से क्या फिर लौट पाएगा ?
इश्क़ के इम्तिहान में जो हार गया ,
आवारा हार कर भी जीत जाएगा ।

-


13 FEB AT 19:00

ढेरों पुरानी बातें छोड़कर, कुछ नये किस्से जोड़ कर,
मुड़ गया है मुसाफिर, फिर अनजाने मोड़ पर,
बेहद उबाऊ है जिंदगी, चल आज नया कुछ और कर,
महक रहे हैं हाथ मेरे, कांटो वाले गुलाब तोड़ कर,
फिर लिखूंगी, मिटा दूंगी, ना जता सकूंगी बोल कर,
हैं हाल बदल रहे मेरे, एक बार पलट कर गौर कर,

-


2 FEB AT 22:49

मैं जिस ओर हूं खड़ा, तू नहीं है यहां,
फ़िर यह मंज़र तूझे कैसे समझ आएगा?
है दूरियां दरमियां तेरे मेरे जज़्बातों की,
इस खामोशी का शोर कितना सताएगा?

जो पत्थर फेंक तू चल लिया मदहोशी में,
वो मुझसे उठा तक नहीं जाएगा!
यह मसला ताकत, हालात, हिम्मत का,
मुश्किल है कि कोई समझ पाएगा !

-


19 JAN AT 8:43






-


19 JAN AT 8:17

मैं रूठूं, नाराज रहूं, खफा हो जाऊं,
पर ऐसा तो नहीं की बेवफा हो जाऊं!
तू इश्क़, इबादत, आदत है मेरी
मैं अपनी आदत से मजबूर कहां जाऊं?


-


15 JAN AT 19:57

किसी का सहारा भी अब संभाला नहीं जाता,
मेरी ता'लीम-ए-ज़ब्त ही ज़रा कच्ची थी!
है ढ़ेरों शिकायतें तुझे मेरे रवैए से लेकिन,
मेरा डर, दर्द, तन्हाई, हर परत बेहद पक्की थी!

है मलबा ज़हन में बरसों पुराने किस्सों का,
सारी खुशियों पर भारी वह एक जबरदस्ती थी!
महज़ ख़्वाब भर नहीं है उस रोज़ का मसला,
मेरे दोस्त, मैं ही वह कम उम्र की बच्ची थी!


-


Fetching MOhaNi dEshMuKh Quotes