अभिषेक मिश्रा 'अलग'   (अभिषेक मिश्रा 'अलग')
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Joined 21 May 2017


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Joined 21 May 2017

अमावस की रात में भी चांद देख सकता हूँ मैं
शर्त फक़त इतनी सी है दीदार तेरा मुमकिन हो

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आशुफ़्ता-तर पेशानी पर
बोसा-ए-आतिशीं तेरी
बेजान हुई धड़कन को
धड़कने की वजह देती है

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तुम शोख़मई सी एक ग़ज़ल
मैं अशआर हूँ छोटा सा
तुम हिन्द महासागर जैसी
मैं गोताखोर अनाड़ी सा
तुम प्रेमचंद की कहानी हो
मैं साधारण ख़बर जैसा
तुम मीठी कूक कोयल की
मैं मौन-रूप की हूँ भाषा
तुम माहताब सी हो रौशन
मैं तारा हूँ तिनका भर का
तुम आफ़ताब सी नूरानी
मैं दिए की लौ भर सिमटा
तुम रेगिस्तान चाहतों का
मैं प्यासा बस पलभर का
तुम 'फेसबुक' की लेखक हो
मैं 'अलग' बेचारा इत्तू👌सा

© अभिषेक मिश्रा 'अलग' 😉

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आकर सामने बैठ... तुझे अपने इश्क़ की इन्तेहां दिखाऊँ
कोरे कागज पर अपने हांथों से बस तेरा ही चेहरा बनाऊँ

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वो मौसम ही बदलाव का था 'अलग'
उसने रास्ता बदल दिया, मैंने मंजिल

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मैं उस दुनियाँ में रहता हूँ, जहाँ बारिश ही बारिश है।
कभी है अब्र की बारिश, कभी आँखों की बारिश है।।

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इश्क़ की

बेबाक़ी में

लफ्ज़ अक्सर

आग बन जाते हैं

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घटा दी रोशनी मैंने अपने दालान में 'अलग'
सुना है ईदी देने वो अपनी छत पर आएगी

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मैंने बस क़तरा - क़तरा इश्क़ लिखा 'अलग'
लोग कहने लगे तुमने मुझे बरबाद कर दिया

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इश्तियाक़-ए-मुहब्बत की ऐसी उक़ूबत दी उसने
ख़ालिस ख़लिश सा ख़स्ता पड़ा है दिल मेरा अब

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