काश
ऐसा भूकंप आए

जिसमें
मेरे और तेरे बीच के
अहम के दरख़्त टूट जाएँ
मतभेद के किले ढह जाएँ
घमंड के आईने चूर हो जाएँ
गुस्से के पहाड़ पिघल जाएँ
नफरत हमेशा-हमेशा के लिए
कहीं दूर तलक दफ़न हो जाए

एक बार फिर
समर्पण के तूफान में घुलकर
मैं और तू मिलकर 'हम' हो जाएँ

- अभिषेक मिश्रा 'अलग'