चेहरा तेरा गुलाबी, आंखें तेरी शराबी
तुझ पर फिदा हुआ मैं, लगता है सब किताबी
अपना तुझे बना लूँ, ख़्वाबों में यूँ सजा लूँ
मस्जिद में माँगता हूँ, बनकर तुझे नमाज़ी
महबूब दिख रहा है, मुझको तेरी सूरत में
मैं चाँद तोड़ लाऊँ, हो जाये गर तू राजी
कोहिनूर मैं ना चाहूँ, कोई फूल मैं ना चाहूँ
आवाज दे रहा हूँ, सुन तो जरा ओ हाजी
मेरे हाँथ में जो तेरे, हाँथों का हो सहारा
फिर जिंदगी को अपनी, कर दूँ जरा जहाजी
आँखों से तेरी चुन लूँ, मैं ग़म के हर वो साए
किस्मत यूँ तेरी दमके, खुशियाँ मिलें जवाबी
एक बार पास आओ, तुझको खुदा बना लूँ
यूँ दूर-दूर रहकर, मुझको ना दो सज़ा जी
खोजा बहुत है मैंने, तुझ-सा हसीन चेहरा
मिलती नहीं किसी में, तुझ-सी शरम-हया जी
मैं हारकर हूँ लौटा, दुनियाँ समझ-परख कर
आख़िर में मान बैठा, तुझमें है कुछ शबाबी
मैं हूँ तेरा दीवाना, सच्चा है ये फ़साना
समझो जरा 'अलग' को, कैसे करूँ बयाँ जी

- अभिषेक मिश्रा 'अलग'