क्या दर्द और दवा इस दुनिया में काम आती है जिसका जैसा शौक़ उसकी वैसी शाम आती है बातें करने वाले हज़ार बैठे हैं अमीरी बाजार में कोई मिटा दे गरीबी नहीं ऐसी जान आती है।।
महबूब से मुलाकात की खबर पागल कर जाती है रातों की नींद को करवटों से घायल कर जाती है.. ऐसी क्या खुशी छुपी होती है महबूब मुलाकात में हर राहगीर को महबूबा की पायल कर जाती है।।
हैरतंगेज भरी है ये ज़िन्दगी और इसके पियादे हैं हम खुद तो खेल खेलती रहती है और इसके प्यासे हैं हम पता नहीं कैसे अपना धर्म निभाती है ये ज़िन्दगी कभी खूब सताती है तो कभी जताती है इसके प्यारे हैं हम।।
टूटने की बारी गर अभी हमारी है तो टूटेंगे कितना भी माफी मांगना बाद में तो रूठेंगे ये गलतफ़हमी मत रखना सब सीधा रहेगा जिसदिन पासा पलटा उस दिन तुम्हें भी लूटेंगे।।
ऐसा क्या गुनाह करते हैं कि जफ़ा निभाती हो तुम्हारा भला चाहने वालों को सज़ा दिलाती हो कोई शिकवा नहीं कि हम तुम्हें अच्छे नहीं लगते पर अपनी बर्बादी की तुम खुद राह बनाती हो।।