2 MAY 2018 AT 9:13

जिंदगी की दौड़ में थक के जब बैठ जाता हूँ
उठा लेता हूँ कलम और कागज
और कुछ लकीरे उकेर देता हूँ
बन जाते है वह अल्फ़ाज़ मेरे
और अलफ़ाज़ शायरी में बदल जाते हैं।

अल्फाजो से जो शायरी हो जाती है
उनमें मेरी तन्हाई झलक जाती है।
उन तन्हाइयो से लड़ कर फिर से संभल जाता हूँ।
और चल पड़ता हूँ एक बार फिर जिंदगी की जंग लड़ने

- Aapka Aman