भूल कर आदर्श अपने भटक गए जो राह,वो ही भटके हुए। लोग कहलवाए।
आओ ऐसे ही इक शख्स आज तुम्हें कहानी सुनाएँ।।।
एक था धनवान ठग्गी,फरेब, धोखे से रूपये वो कमाता था
,शान-शौकत से जीवन बिताता था।
किसी की मदद को वो हाथ ना आगे बढाता था
बस ऐसे -वैसे कामों से वो अपने अकाउंट मे सिफरें बढाता था।
दुसरी तरफ तो देखो एक शख्स ऐसा था ईमानदारी ही उसका एकमात्र पेशा था।
ईमानदारी से धन कमाना, दीन -दखियों के काम आना
,मस्त रह हरि गुण गाना यही उसकी अमीरी थी पर हर
कोई कहता है तभी तो उसके घर आजतक फकीरी थी।
समय ने ऐसा रंग दिखाया मौत ने दोनों को एक साथ बुलाया।उनकी रूहें जिस्म छोड़ ना जाने कहाँ समाईं ,यह राज तो कोई भी आज तक ना सुलझा पाया मेरे भाई पर अमीर और फकीर के हिस्से छः फुट जमीन और सफेद सूती चादर ही आई।जिस दौलत को इकट्ठा
किया वो यहीं रह गई।
कहते हैं करमों की गठरी साथ उनके बह गई।इस कहानी ने दोस्तों मुझे बहुत उलझाया ।असल में अमीर कौन था दोस्तों दिल अभी तलक ना समझ पाया।।
अगर आप को पता चल गया तो कृपया बतलाएँ, मेरे मन की उलझन को अब आप ही सुलझाएँ*
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