दीदार-ए-हुस्न भर की इल्तजा थी तेरा मुझे यूं बाँहों में भींचना, मौतज़ा से कम ना था - मलंग
दीदार-ए-हुस्न भर की इल्तजा थी तेरा मुझे यूं बाँहों में भींचना, मौतज़ा से कम ना था
- मलंग