Mayank Sharma   (मलंग)
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हरफन मौला, हरफन अधूरा

।। हर हर महादेव।।
Joined 9 November 2017


हरफन मौला, हरफन अधूरा

।। हर हर महादेव।।
Joined 9 November 2017
20 NOV 2022 AT 10:59

गाँव की कच्ची सड़क सा मैं
शहर का पक्का मकान हो तुम
सोमवार की भाग दौड़ सा मैं
इतवार का इत्मीनान हो तुम!

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5 NOV 2022 AT 19:54

सुनो..
जैसे बारिश की एक बूंद
किसी पत्ते पे गिरकर
हौले से सरकते हुये
किसी दूसरे बूंद में मिलकर
जमीन पर गिरती हैं ना,
ठीक वैसे ही
तुझे ख़ुद में मिलाकर
इश्क़ की गहराई में
गिरना है मुझे!

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9 SEP 2022 AT 16:31

झुकी पलकें, चुपचाप खड़ी तुम
बता तो दो, इकरार है क्या!

खुली जुल्फें, फुर्सत में तुम
कैलेंडर में देखूँ, इतवार है क्या!

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31 JAN 2022 AT 19:16

सुनो..
तेरी एक झलक पाने की खातिर
गबरू दिल बब्बर बना फिरे है!
हँस कर देख लिया जो तूने
कमबख्त दिल टाब्बर बना फिरे है!

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30 JAN 2022 AT 19:22

अरे उठ जा दिल मेरे,
धड़क जरा, होश कर !
वो फिर आई है कत्ल करने,
पल्लू कमर में खोस कर !

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18 SEP 2021 AT 16:29

फुर्सत में बैठा आज,
तो करने लगा खुद से बातें!

याद है कि भूल गया,
वो सारी बिन सोई रातें!

थका जरूर पर, तू कभी रुका नहीं
किस्मत के आगे, तू कभी झुका नहीं!

थोड़ी लगन से, थोड़ी जतन से ,की तुमने घंटो पढ़ाई
कभी गिर कर, फिर सम्भल कर, की तुमने सालों लड़ाई!

मिली जो सफ़लता, हुई आपार खुशी
फिर आज क्यूँ है तू, संसार से दुखी!

नौ से पाँच के चक्कर में फंस कर, अंदर ही अंदर कराह रहा है तू
आईने में दिखे मुर्दे सा जैसे, बस बाहर ही से मुस्करा रहा है तू!

कह गए बुजुर्ग, थे जो ज्ञानी,
सबने उनकी बात है मानी!

कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है
हंसने के लिए बंधु, पैदा होते रोना ही पड़ता है!

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5 SEP 2021 AT 20:44

कल पूछते थे तारीफ मेरी, कि आखिर कौन हूँ मैं?
आज करते हैं तारीफ मेरी, जैसे 'ग़ालिब' या 'जॉन' हूँ मैं!

कभी खींजता-चिल्लाता, कभी सोचता-मुस्कुराता
गिरगिटों के इतने रंग देखकर, अब बस मौन हूँ मैं!

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18 JUL 2021 AT 18:30

बुद्धिजीवियों से भरी नगरी में,
मेरा अपरिपक्व प्यार हो तुम!
हफ्ते भर की थकान मिटाती,
फुर्सत भरा इतवार हो तुम!

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13 JUN 2021 AT 23:19

बेवक्त वक्त की बात निकाल
मुझसे ये मिसाल कहता है
बात ना हो, तो प्यार है कैसा?
अक्सर ये सवाल कहता है!

कहो बात भी, सुनो रात भी
यार मेरा खुद को जिद्दी कहता है
ना करूँ बोले वो जैसा तो
प्यार को मेरे वो पिद्दी कहता है!

समझ ना आये, समझाऊं कैसे
ग़र रूठे रोज तो मनाऊँ कैसे,
इश्क़ है सच्चा, ना खेल कोई
बस इत्ती सी बात बताऊँ कैसे!

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18 MAY 2021 AT 8:46

सिर्फ मौत ही है मुकम्मल यहाँ
एक दिन सब खत्म हो जायेगा
कोई गंगा में विसर्जित हो जायेगा
कोई मिट्टी में दफन हो जायेगा!

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