यादों का अम्बार लगाकर
सोचती हूँ एक आखिरी नज़्म लिख दूँ,
तुम्हारे नाम की...
वो सारे शब्द, सारे एहसास उड़ेल दूँ,
आज इस कोरे कागज़ पर...
और रंग दूँ इसको तुम्हारे नाम,
इक आखिरी बार...
उसके बाद इस कलम को दफ़ना दूँगी,
इसी आँगन में यहीं कहीं...
शायद तब जाकर कहीं सुकूं से,
मौत को गले लगा पाऊँगी...
- Manvi Verma ©