18 APR 2018 AT 22:42

उम्मीदों का दामन थाम हर रोज़ चला करते हैं,
हर रोज़ वो झटककर आगे बढ़ जाती है...
फिर तेज़ कदमों से चल उसे पकड़ने की,
कोशिश में लग जाती हूँ...
रोज़ाना का यही खेल चलता रहता है हमारे बीच,
अब तो जैसे आदत सी बन चुकी है ये...
थोड़ी थोड़ी उम्मीद की धूप जमा करके,
ये ज़िन्दगी की गाड़ी आगे बढ़ रही है...
काम आती है वक़्त बेवक़्त इसकी गर्माहट,
मेरे अश्क़ों से भींगे
गीले सपनों को सुखाने के लिए...

- Manvi Verma ©