जाने कितने कपड़े बदलेगा ये,पोशीदा ही रहने देता इस एहसास को...कुछ लफ़्ज़ों से बयां नहीं किये जाते,बस जी लिया जाता है उस खास को...रूह को कहाँ है लिबास की जरूरत,ये तो बस अंदर ही अंदर जीता जाता है,उस खास की चलती हर साँस को... - Manvi Verma ©
जाने कितने कपड़े बदलेगा ये,पोशीदा ही रहने देता इस एहसास को...कुछ लफ़्ज़ों से बयां नहीं किये जाते,बस जी लिया जाता है उस खास को...रूह को कहाँ है लिबास की जरूरत,ये तो बस अंदर ही अंदर जीता जाता है,उस खास की चलती हर साँस को...
- Manvi Verma ©