17 SEP 2017 AT 16:13

जाने कितने कपड़े बदलेगा ये,
पोशीदा ही रहने देता इस एहसास को...
कुछ लफ़्ज़ों से बयां नहीं किये जाते,
बस जी लिया जाता है उस खास को...
रूह को कहाँ है लिबास की जरूरत,
ये तो बस अंदर ही अंदर जीता जाता है,
उस खास की चलती हर साँस को...

- Manvi Verma ©