17 APR 2018 AT 12:32

बिखर रही हैं हर रोज़ कुछ,
धूमिल हो गया वो स्वाभिमान...
दो ग़ज़ ढूंढ न पाई खुद के लिए,
नापने चली थी वो आसमान...

- Manvi Verma ©