बिखर रही हैं हर रोज़ कुछ,धूमिल हो गया वो स्वाभिमान...दो ग़ज़ ढूंढ न पाई खुद के लिए,नापने चली थी वो आसमान... - Manvi Verma ©
बिखर रही हैं हर रोज़ कुछ,धूमिल हो गया वो स्वाभिमान...दो ग़ज़ ढूंढ न पाई खुद के लिए,नापने चली थी वो आसमान...
- Manvi Verma ©