बड़ी चालाक है ये आँखें तुम्हारी,
इशारे करके ही बेहोश कर जाती हैं...
और इन गुलाबी लबों की बात क्या कहें!!
जो ये हिले और मेरा नाम हौले से ले,
तो सीने में धड़कता ये दिल;
किसी आज़ाद पंछी की तरह
हवा में कुलांचे भरता है..
और ये कम्बख़्त तिल जो
मुँह चिढ़ाता है मुझे हर बार,
तुम्हारे इन होंठों को छूता हुआ;
कभी कभी रश्क़ होता है मुझे इससे...
बिखरती हैं जब ये ज़ुल्फ़ें तुम्हारी,
इन हवाओं संग बलखाती हैं..
तो मेरा मन भी बारिश में बौराये,
किसी मोर की तरह नाचता है;
अपने साथी को रिझाने की कोशिश में...
क्या कहूँ तुम्हें!!
तुम क़यामत की तरह आई हो,
ज़िंदगी में मेरी...
पूरी कायापलट हो गई मेरी शख्शियत की...
कभी आवारा सा भटकता मैं,
आज तुमपर शायरी भी करने लगा हूँ...
सच इश्क़ ने मुझे काम का बना दिया....
- Manvi Verma ©