आज टुकड़ों में धूप आई थी मेरे घर
उदास सी थी बहुत..
भारी मन से इधर उधर बिखरी पड़ी थी
गर्माहट उसकी...
वो बादल उसके साथ आँख मिचौली खेल रहे;
जल्दी आएंगे, ये कहके झूठा दिलासा दे गए...
मौसम बरसात का तो कबका आ गया,
पर मेरे शहर में धूप की छुट्टी नहीं हुई...
रोज़ाना बाकी मौसम जैसे ही,
अपनी ड्यूटी में लगी है ये बिना रुके...
और ये मनचले बादल जाने कहाँ
अपनी प्यार की पींगे बढ़ा रहे हैं...
मेरा शहर तो कबसे प्यासा है,
उनके बरसने के इंतज़ार में...
- Manvi Verma ©