याद आती है वो शाम
जब चिड़ियों संग हम भी
अपने-अपने घर को हो लेते थे...
खेलकर दोस्तों के साथ मोहल्ले में
गिल्ली डंडा, गली क्रिकेट, जंजीर...
और ना जाने कितने खेल थे हमारे पास...
इस खेल में हुई भागम-भाग
और दोस्तों के साथ मस्ती कर के,
कभी थकान नहीं होती थी...
बल्कि एक नई ताकत मिलती थी...
याद आती है वो शाम,
वो बेफिक्री वाली शाम...
जब ज़िन्दगी इन गैजेट्स में नहीं थी...
तब दोस्तों का किसी बात पर नाराज़ होना,
रातों की नींद गायब करने वाला होता था...
आज तो बस खानापूर्ति होती है
हर रिश्ते में...
इस भागदौड़ वाली ज़िन्दगी में,
खुशियों वाले पल खो से गए हैं...
जो अंदर से महसूस करते थे कभी,
छोटी छोटी चीजों में...
आज जब बड़ी बड़ी चीजें भी
रुआंसा कर जाती हैं हमें,
तो याद आती है वो शाम,
वो बेफिक्री वाली शाम...
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