झूठ कहूँ तो ये चाँद, ढल जाए .तू आए और कुछ कहाँ नज़र आए .झूठ कहूँ तो ये चाँद .. -
झूठ कहूँ तो ये चाँद, ढल जाए .तू आए और कुछ कहाँ नज़र आए .झूठ कहूँ तो ये चाँद ..
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सौ रह-दारियाँ थीं , हज़ार अफ़साने रहे बिन तिरे तन्हा से सब, कब मुकम्मल हुए .ख्मोश स्याह सर्द से, ये अंधेरे कब बोलते हैं .नूर ए नजर महके जो इक तबस्सुम सी तिरिदूर वादियों सुरमई से फिर जैसे गीत बहते हैं .सौ रह-दारियाँ थीं , हज़ार अफ़साने रहे .. -
सौ रह-दारियाँ थीं , हज़ार अफ़साने रहे बिन तिरे तन्हा से सब, कब मुकम्मल हुए .ख्मोश स्याह सर्द से, ये अंधेरे कब बोलते हैं .नूर ए नजर महके जो इक तबस्सुम सी तिरिदूर वादियों सुरमई से फिर जैसे गीत बहते हैं .सौ रह-दारियाँ थीं , हज़ार अफ़साने रहे ..
ता-'उम्र रहे रौशन सर पे चांदनी सुबह हो न हो महकती जुल्फों की तुम शाम कर दो .ख़त्म न हो कभी , ऐसी कोई बात कर लो लंबी सी इक रात तुम , मेरे नाम कर दो .. -
ता-'उम्र रहे रौशन सर पे चांदनी सुबह हो न हो महकती जुल्फों की तुम शाम कर दो .ख़त्म न हो कभी , ऐसी कोई बात कर लो लंबी सी इक रात तुम , मेरे नाम कर दो ..
क्षण-क्षण वो घट रहा, चंचल नैन नहीं रे धीरगलबही में नींद लगी रे, फिर जागे के पीर .. -
क्षण-क्षण वो घट रहा, चंचल नैन नहीं रे धीरगलबही में नींद लगी रे, फिर जागे के पीर ..
बिखरेंगें महकेंगे, पात-पात डारी-डारी खिले जो, मनु गुल कोईनीलकंठ चातक फिर नज़र आएगा .बिखरेंगें महकेंगे, वो समाँकोई रह जाएगा .. -
बिखरेंगें महकेंगे, पात-पात डारी-डारी खिले जो, मनु गुल कोईनीलकंठ चातक फिर नज़र आएगा .बिखरेंगें महकेंगे, वो समाँकोई रह जाएगा ..
न रहो यूँ ख़ामोश , बिन तेरे और मेरे तुमने कहा जो , मैंने सुना वो समाँ कोई, रह जाएगा .न रहो , यूँ ख़ामोश .. -
न रहो यूँ ख़ामोश , बिन तेरे और मेरे तुमने कहा जो , मैंने सुना वो समाँ कोई, रह जाएगा .न रहो , यूँ ख़ामोश ..
क़रीब-तर , वो यूँ हुए के कुछ रंग से, रह गए .कमसिन रूप , वो दिलकश अदा परवाज़ से मोहताज हम रह गए .कुछ रंग से, रह गए .. -
क़रीब-तर , वो यूँ हुए के कुछ रंग से, रह गए .कमसिन रूप , वो दिलकश अदा परवाज़ से मोहताज हम रह गए .कुछ रंग से, रह गए ..
कौन कहता है , मिटता है ज़ुल्मसुर्ख़ सी दीवारों को आज भी है 'इल्म .. -
कौन कहता है , मिटता है ज़ुल्मसुर्ख़ सी दीवारों को आज भी है 'इल्म ..
भरी दोपहर थीघनी थी जुल्फें , फिर नींदमीठी आई थी .आधे पहर कोआँख खुली के उंस सी वो चाय ले ,मुस्कुराती हुई मनुपास चली आई थी .भरी दोपहर थीघनी थी जुल्फें .. -
भरी दोपहर थीघनी थी जुल्फें , फिर नींदमीठी आई थी .आधे पहर कोआँख खुली के उंस सी वो चाय ले ,मुस्कुराती हुई मनुपास चली आई थी .भरी दोपहर थीघनी थी जुल्फें ..
ख़ामोशी तिरि, गर इश्क़ है तो चल फिर यूं ही सही ,कुछ लफ्ज़ों को आराम रहे बैरी धड़कनें मनु बस में नहीं .. -
ख़ामोशी तिरि, गर इश्क़ है तो चल फिर यूं ही सही ,कुछ लफ्ज़ों को आराम रहे बैरी धड़कनें मनु बस में नहीं ..