कवि ने पार कर लिए सातों आसमान
मगर तैरा ना सका जीवन की नाव
रश्मि रथी बन गया सृष्टा
घर में रौशनी की एक किरण को तरस गया
घाव देती हैं कभी रचनाएं
राह दिखती हैं कभी आलोचना जिनकी
अजब हैं कमल को पद्म भूषण देकर
जग कर रहा गज़ब अठखेलियां
जिस साहित्य ने बचायी लाज़ संस्कृति की
उसके चूल्हे पर क्यों गिरती यहाँ बिजलियाँ
यादों को जिनकी मिलती ज़िन्दगी
जीते जी मगर पीते हैं वो
जीवन विष का प्याला यहाँ
- Manjula Shaah