Manish Jha   (Manish Kumar Jha)
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मैं शब्द खोजता हुंँ।
Joined 19 November 2017


मैं शब्द खोजता हुंँ।
Joined 19 November 2017
19 NOV 2021 AT 0:27

जिन्हें सख्त निर्देश मिला था
नहीं लेकर आने का
कोई भी अन्य सामान
उनके लिए सारे सम्बोधन छूट गए
यह कुछ भी छूट जाने की पराकाष्ठा है।

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20 SEP 2021 AT 20:48

किनारों के संवाद
गढ़ते हैं बहाव
नदियां होतीं है पृथ्वीयों के मौन
जो नहीं हो पाते हैं गुमशुदा
सूचक होते हैं पागलपन के
इन्हें बाढ़ का सूचक होना था।

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19 SEP 2021 AT 19:54

यदि स्मृतियां भी नाप सकती
प्रकाशवर्षों को
जैसे नाप सकती है रौशनी
तब खगोलशास्त्र हो सकता था
थोड़ा और व्यवाहारिक
सूर्य प्रेम में जीता हुआ तारा हो सकता था
तारे प्रेम में हारे हुए सूर्य हो सकते थे।
- मनीष

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21 OCT 2019 AT 23:33

बाबुल की बुलबुल जैसी, और भैया को प्यारी लड़की
एक सफर को छोड़ अधूरा, नए सफ़र पर जा रही लड़की
जादूगर को प्राण सौंप, बिन लिए विदा ही फुर्र हो गई
जादूगर के हर करतब पे, पड़ गई कितनी भारी लड़की

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10 AUG 2019 AT 16:22

वो जो शर्बत पीते पीते शर्मशार हो जाती थी
जिसको ये मालूम था कि शर्बत मेरा जुठा है।

मैं तुम्हारे चेहरे की क्या मिसाल दुं क्या कहुं?
बस यही की तुम चांद नहीं चांद तुम जैसा है।

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22 JUL 2019 AT 11:22

जब प्रयोजन सिद्ध होंगे जब नकारा मैं बनूंगा
आकाश जब दुत्कार दे जब टूटता तारा बनूंगा
जब अदालत कटघरे में डाल कर मजलिस करेगी
बिन प्रमाणों के भी दण्डित करने की कोशिश करेगी
तब कुशल अधिवक्ता बन निज पक्ष को मजबूत करना
आंखों के प्रतिबिंब मेरे मोम बन बहने लगे जब
हिचकियाँ लेती कपोलों पर प्रणय प्रस्तुत करना।

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4 JUL 2019 AT 19:54

मोहब्बत का नशा भी उतरा और नशे जैसा

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25 JUN 2019 AT 11:07

इक दिन अचानक से खोए और फिर तो बारहा खोने लगे
इक दिन न मिलते तो रोते बहुत, इक दिन मिले, और रोने लगे

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16 JUN 2019 AT 2:24

टूटे घोंसले उलझे हूए तार नजर आते हैं
कटते शजर बनते बाजार नजर आते हैं
अलकतरे की पक्की सड़क पर भीड़ है
खाली रास्ते शहरों के पार नजर आते हैं

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25 APR 2019 AT 12:52

ना जाने ऐसी कितनी ही झूठी बातें,
रातों को दिन, दिनों को कहना रातें
एक झूठ तो ये भी की, इश्क सच्चा था
खैर, बाकी भी ठीक थे लेकिन ये वाला ज्यादा अच्छा था।

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