यदि स्मृतियां भी नाप सकती प्रकाशवर्षों को जैसे नाप सकती है रौशनी तब खगोलशास्त्र हो सकता था थोड़ा और व्यवाहारिक सूर्य प्रेम में जीता हुआ तारा हो सकता था तारे प्रेम में हारे हुए सूर्य हो सकते थे। - मनीष
बाबुल की बुलबुल जैसी, और भैया को प्यारी लड़की एक सफर को छोड़ अधूरा, नए सफ़र पर जा रही लड़की जादूगर को प्राण सौंप, बिन लिए विदा ही फुर्र हो गई जादूगर के हर करतब पे, पड़ गई कितनी भारी लड़की
जब प्रयोजन सिद्ध होंगे जब नकारा मैं बनूंगा आकाश जब दुत्कार दे जब टूटता तारा बनूंगा जब अदालत कटघरे में डाल कर मजलिस करेगी बिन प्रमाणों के भी दण्डित करने की कोशिश करेगी तब कुशल अधिवक्ता बन निज पक्ष को मजबूत करना आंखों के प्रतिबिंब मेरे मोम बन बहने लगे जब हिचकियाँ लेती कपोलों पर प्रणय प्रस्तुत करना।
ना जाने ऐसी कितनी ही झूठी बातें, रातों को दिन, दिनों को कहना रातें एक झूठ तो ये भी की, इश्क सच्चा था खैर, बाकी भी ठीक थे लेकिन ये वाला ज्यादा अच्छा था।