तुम वक़्त लगाती गई, मैं आने की उम्मीद करता रहा।
हश्र ये हुआ, तुम सामने थी, मैं इंतजार करता रहा।।
कितनी हसीन हो तुम, मेरी आँखों से मालूम पड़ता।
तुम आइना निहारती रही और मैं दीदार करता रहा।।
उस काली, छोटी बिंदी में जाने कौन सा तिलिस्म है।
तुम्हारे होठों को भूल, मैं माथे का बोसा करता रहा।।
जब आखिरी दफ़ा गले मिले थे हम, याद होगा तुम्हे।
तुम्हे जाने को कहता रहा और गिलाफ़ करता रहा।।
मेरी बदकिसम्ति देखो, यहाँ भी एक रकीब मिला।
फर्क नहीं पड़ा कभी, खुद पर एतबार करता रहा।।
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