मैंने देखा है (नदियों को, घाटों को,उन सीड़ियो को, मंदिर की बजती घंटिया, लहरों में तैरती पतवारें और नावों को....)तुम्हारा दूर होना सावन में खलते हुए, मानो गंगा खुद उफनती हुई सारी सीढ़िया चढ़ आई हो हमे ढूंढते हुए✒️
आसमा जैसे बारिश की लड़ियां पिरो रही हो और वहीं दूसरी तरफ बूंद मोतियों के जमीं पर जैसे बिखर रही हो... उसी बारिश के बाद खिलती धूप सा होता है अक्सर तेरा मिलना .. जैसे हज़ार फूलों पर फिर से भौरों ने राग छेड़ दी हो और पतों के कोमल बदन पर बादल सरसराहट कर रुक गए हो