Mallika Dimri   (Mallika Dimri)
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Joined 20 March 2017


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Joined 20 March 2017
27 NOV 2017 AT 18:59

उनकी चाहत के सपनों को
हमने कभी सँवारा नहीं था,
क्योंकि उनके चाहने वालों की
भीड़ में रहना हमें गँवारा नहीं था...

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9 MAY 2021 AT 8:08


माँ महज़ शब्द नहीं,
खुद में एक परिभाषा है
यह वो हीरा है,
जिसे रब ने खुद तराशा है


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9 JAN 2021 AT 19:13

तेरी तस्वीर से नज़रें मिलाना, अच्छा नहीं लगता
तेरी यादों में अब रातें गवाना, अच्छा नहीं लगता|

जहाँ जिस्मानी मोहब्बत के चर्चे हो जाए आम
उन गलियों में हीर- राँझा सुनाना, अच्छा नहीं लगता|

बचपन को सींचा था कभी जिस आँगन ने मेरे,
उस आँगन से दूर घर बसाना, अच्छा नहीं लगता|

कभी मेरे पल- पल की ख़बर होती थी जिन्हें
उन यारों से मिल ना पाना, अच्छा नहीं लगता|

जिनकी महनत से महकती है ये धरती अपनी,
उन किसानों का गिड़गिडा़ना, अच्छा नहीं लगता|

इंसानों में सही- गलत की समझ जो बिक जाए,
ईमान का यूँ सिर झुकाना, अच्छा नहीं लगता|

उँगली उठाने में तो सब मशरूफ़ है यहाँ,
मगर करीब आइने के आना, अच्छा नहीं लगता|

घडी़- घडी़ जो मुखौटे बदलते हो तमाम,
हाथ उन बहरूपियों से मिलाना, अच्छा नहीं लगता|

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18 JUN 2020 AT 18:16

लाज़मी है तुम्हारा मुझे यूँ भूल जाना,
भला चाँद को किसी तारे की कमी कब खली है ?

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5 JUN 2020 AT 9:53

माना कि तुम एक इंसान हो,
पर तुम भी तो यहाँ महमान हो |

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4 JUN 2020 AT 18:17

हमारी पहली बारिश

(कहानी नीचे पढ़ें)

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2 JUN 2020 AT 17:55

हो अपनों का साथ तो घर को महल समझ
इश्क़ से रंगे हर ख़त को तू ग़ज़ल समझ

तेज़ आँधी में भी जो दिया बुझता नहीं
उसकी लौ को किसी की दुआ का फल समझ

चेहरे पे चेहरा लिए फिरते हैं लोग
मुखोटा जो छोड़ दे, उसे ही कमल समझ

रस्म-ए-मोहब्बत निभाना नामुमकिन नहीं
दो दिल जो जुड़ जाए, रिश्ता तू सफल समझ

उसकी निगाहों में जब दिखे अक्स मेरा
मेरी इबादत-ए-इश्क़ को मुकम्मल समझ

नसियत दुनिया बदलने की तो देते हैं सभी,
जब कोई आईना उठा ले, उसे पहल समझ,

तेरी रातें जो कभी सुकून से महके
अपनी दिन भर की मेहनत को सफल समझ

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10 MAY 2020 AT 13:22

ऊँगली पकड़ के पहले वो हमें चलना सिखाती है,
फिर हर मोड़ पे, वो सारथी का किरदार निभाती है|

जिंदगी के हर सवेरे में उजाला वो ही लाती है,
रात के अँधेरे में, हमारा सहारा भी बन जाती है|

एक वो ही है जो हमें हमसे बहतर जानती है,
हमारी रग- रग को वो बखूबी पहचानती है|

उस खुदा की सूरत हमें कुछ यूँ नज़र आती है,
"माँ" कहते ही वो झट से हमारे पास चली आती है|

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18 APR 2020 AT 18:33

टूटते तारे से जो माँगी थी कभी,
वही इनायत है, मोहब्बत तेरी

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11 APR 2020 AT 17:29

अँधेरा जितना भी घना क्यों ना हो,
रात के बाद तो सूरज ही दिखता है |

लिखने जो बैठूँ मैं भी गज़ल,
हर ख़्याल के पीछे इश़्क ही दिखता है |

मानते सब है इस दुनिया को मतलबी,
जो बोल दे, गुनहगार वो ही दिखता है |

हर तकलीफ़ में हिम्मत बढा़ती है वो,
सूरत में माँ की, वो खुदा ही दिखता है |

मायूसी छुपा के मुस्कुराती है वो,
कारण, कोई खास दोस्त ही दिखता है |

तू इक दिन आ के मेरा हाथ थामे,
ये ख़्याल मेरा, अधूरा ख़्वाब ही दिखता है|

दूर रह के भी सुकून दिलाता है वो,
आशिक़ मेरा कुछ चाँद सा ही दिखता है |

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