तेरी तस्वीर से नज़रें मिलाना, अच्छा नहीं लगता
तेरी यादों में अब रातें गवाना, अच्छा नहीं लगता|
जहाँ जिस्मानी मोहब्बत के चर्चे हो जाए आम
उन गलियों में हीर- राँझा सुनाना, अच्छा नहीं लगता|
बचपन को सींचा था कभी जिस आँगन ने मेरे,
उस आँगन से दूर घर बसाना, अच्छा नहीं लगता|
कभी मेरे पल- पल की ख़बर होती थी जिन्हें
उन यारों से मिल ना पाना, अच्छा नहीं लगता|
जिनकी महनत से महकती है ये धरती अपनी,
उन किसानों का गिड़गिडा़ना, अच्छा नहीं लगता|
इंसानों में सही- गलत की समझ जो बिक जाए,
ईमान का यूँ सिर झुकाना, अच्छा नहीं लगता|
उँगली उठाने में तो सब मशरूफ़ है यहाँ,
मगर करीब आइने के आना, अच्छा नहीं लगता|
घडी़- घडी़ जो मुखौटे बदलते हो तमाम,
हाथ उन बहरूपियों से मिलाना, अच्छा नहीं लगता|
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