Maitreyee Chauhan   (Maitreyee)
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Joined 22 November 2017


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19 MAR 2019 AT 2:24

लाल, पीला, हरा, हर रंग तुमने अपनी थाली में सज़ा रखा है
मेरे लिए कौन सा रंग तुमने अलग से बचा रखा है?

क्या रखा भी है कोई रंग जो मुझ पर तुम चढ़ाओगे
या अपने हर रंग से फिर मुझे तुम अनजान कर जाओगे

मुझे रंगने में हाँ तुम थोड़ा तो कतराओगे
मगर तुम बिन ये गाल, हर साल, साफ ही धूल जाएंगे

बिखरेंगे रंग इधर उधर जो तुम्हारे
मेरे घर तुम आना रंगोली को उन रंगों से सजाने

हम फिर होली एक दूजे के संग खेलेंगे
तुम बन कान्हा, मैं राधा
इश्क़ के गुलाल से रूह को छूलेंगे।।

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6 SEP 2018 AT 21:35

बर्सो से पड़े सुर्ख, घबराए और डरे हुए से चेहरों पर,
आज ख़ुद्दारी की मुस्कुराहट आयी होगी।

सालों से चल रही माँ ( भारत माता) और बेटे की इस लड़ाई में,
आज माँ ने अपने बेटे की हर विशिष्टता अपनाई होगी।

समाज ने भी आज शायद आँखें खोली होंगी,
सरकार ने भी अपना नारा दोहराया होगा-
" लड़का - लड़की एक समान"
इसका सही अर्थ आज उनको समझ आया होगा।

फिर धड़के होंगें आज हज़ारों दिल,
अपने गुमनाम रिश्ते को नाम देने का उनको आज ख़्याल आया होगा।

नहीं होता महज़ लिंग संदर्भ इश्क़ में,
मन गज़ल और तन तरन्नुम सा गाता है,
इसका अंदाज़ा आज उन्हें हुआ होगा
अपराधों में गिना करते थे जो इश्क़ को मेरे!

अतरंगी और उमंगी से मेरे इश्क़ को
आज इन्द्रधनुष बनाकर रब ने भी अपना सतरंगी सलाम दिया होगा।।

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3 JUL 2018 AT 18:21

कुदरत ने तुझ को बनाया है शायद किसी साँचे में ढालके
ख़ुदा का बेशकीमती तोहफा है तू , वरना होता नहीं कोई इतना खूब इस जहान में

तारीफ़ करू मैं तेरी क्या क्या
तेरे हर हिस्से,हर किस्से ने मुझे मोह लिया है

सोने सा चमकता है माथा तेरा
हो जैसे रेगिस्तान पर सूरज का पहरा घना

सांझ से काले केश है तेरे
हो जैसे मीठी शरारत का मज़ा

काशी की गलियों सी आँखें है तेरी
हो जैसे भूल भूलैये का खेल बड़ा

गंगा और ज़मज़म से है होंठ तेरे
बहती है इनसे हमेशा अमृत धारा

फूलों के बाग़ से है गाल तेरे
हो जैसे बसंत नया नया

जादुई छड़ी से है हाथ तेरे
लिखते है सच, रहते है तत्पर मदद के लिए ये सदा

तीर्थ की धरती से है पांव तेरे
है जिनमे चारो धाम की रहमत और पवित्र धरा

महर्षि, सरस्वती सा है मस्तिष्क तेरा
हो जैसे ज्ञानी और प्रतापी मूरत का बना

दर्पण सा है दिल तेरा
ना भेद भाव करता, है नाज़ुक ये बड़ा

कस्तूरी सी महक है तेरी
हो जैसे कनौज़ का इत्र तुम में बसा

सितारों सी शक्सियत है तेरी
हो जैसे नवाज़िश पर लिखी ग़ज़ल का मतला

हाँ ऐसा ही है जादू तेरा
खूबसूरती को जिसकी मैंने अभी तक आधा ही है पढ़ा।।

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21 JUN 2018 AT 1:50

बहुत देर लगा दी तुमने आने में
सफ़र से लौट आओ अब किसी बहाने से

पीछे मुड़ कर तुम देखो एक दफा,
तुम्हारे खातिर मां इंतज़ार में बैठी है।

तुम्हारे जो शिकवे गिले रहे है मुझ से
उनकी सज़ा मैंने पा ली है,
तुम लौट आओ की अब तुम बिन हर ख़ुशी मुझे खलती है।

झूठी तुम्हे क्या बात बताऊं-
हर शक्स ने यहां अपनी जरूरतें पूरी की है
तुम्हारे जाने के बाद ,
तुम जैसी मुझे आज तक नहीं मिली है।

डायरी पर लिखी तुम्हारी और मेरी दोस्ती की दास्तान,
उन्हीं पन्नों में क़ैद होकर रह गई है,
तुम लौट आओ की अब तुम बिन ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं रही है।

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19 JUN 2018 AT 17:31

उल्फत अब नयी नहीं रही
तुम्हारे और मेरे बीच अब वो बात नहीं रही

आशिक़ मिजाज़ तुम्हारा भी ना रहा
मेरे इश्क़ में भी अब कटौती बढ़ गई

दीदार को तरसती थी आँखें
रोज़ के मिलने मिलाने से आँखों में अब चमक नहीं रही

तुम्हारे होंठो को चूमना, तोहफा था मेरा
रोज़ के तोफे की कद्र अब नहीं रही

रातों में तन पर चांदनी बीछ जाया करती थी
करवट बदल कर सो जाते है, चांद सितारों से अब दोस्ती नहीं रही

तुम्हारे माथे की शिकन से सर मेरा दुखता था
एक दूजे की इच्छाओं की परवाह अब नहीं रही

कस्मे वादो का हम वो खेल खेला करते थे
मजबूरियों, बहानो से उम्र भर की उम्मीद अब नहीं रही

अना ना थी हम में, अदब हमारी फितरत थी
एक दूसरे से रश्क रखकर, रिश्ते की क़ीमत अब नहीं रही

बेबाक तुमसे दिल की हर बात कह दिया करती थी
ग़ैर से जो हो गए हो तुम, अपनेपन की बात अब नहीं रही

घड़ियों से हम दोनों को परहेज़ था
24 घंटों में से 5 मिनट की फ़ुरसत हमें अब नहीं रही

इजहार-ए-इश्क़ रोज़ हुआ करता था
इश्क़ कहने में, इश्क़ करने में अब वो ख़ूबसूरती नहीं रही
उल्फत अब हमारी नई नहीं रही
तुम्हारे और मेरे बीच अब वो बात नहीं रही

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30 MAY 2018 AT 0:56

कुछ परिंदों को ऊँचा उड़ना होता है,
कुछ मुसाफिरों को नया राह ढूँढना होता है,
जो चले जाते है यूँ बेवक्त घर छोड़कर,
उनके अरमानों को ना जाने कौन सा शिखर छुना होता है।

वो कहाँ ठहरते है भीड़ के साथ,
उनका व्यवहार तो पानी सा विपरीत होता है।
वो जानते नहीं रिवाज़-ए-जहान को,
उनका मक़सद तो जहान को तब्दील करना होता है।
वो कैद हुआ नहीं करते - अफसाने, अख़बारों और किताबों में,
उनका संघर्ष उन्हें शिलालेख बना कर चला जाता है।

कुछ फसल जल्दी ही पक जाती है,
कुछ बर्फ़ सर्दी में भी पिघल जाती है,
जो कह देते है अलविदा बीच सफ़र में,
माँ कहती है - ख़ुदा को उनकी बहुत जरूरत होती है।

वो बाशिंदे से एक जगह के नहीं होते,
बंजारो सी रूह एक जहान से दूजे तक घूमती रहती हैं।
उनकी रौनक को जरूरत नहीं किसी दीप की,
उनकी यादों की शमा पूरे शहर को रोशन रखती है।
उनके खातिर यूँ अश्क बहाना,
उनको कितना लज्जाता है,
कस्तूरी को जब कपूर में जलाया जाता है।
रुखसत हो कर वो हमसे जाते कहाँ है,
बंद आँखो से देखो, वो आज भी कितने पास है।
वो जो चले जाते है महफ़िल से उम्दा किरदार निभा कर के,
दिल लगाना उनसे, फ़क़त अपना ही नुक़सान है।।

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21 MAY 2018 AT 2:06

तेरे मेरे दरमियान ये फासले जो तुमने अब बढ़ा ही दिए हैं
तो चलो ये फासलों का खेल खेलते हैं
तुम कोशिश करो मुझे भुलाने की
मैं तयारी करती हूं सरहद पार कराने की।।

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18 MAY 2018 AT 1:12



ग़ालिब, गुलज़ार , मीर , राहत
सब समझाते इश्क़ की पीर
कोई लिखता महबूब को बेवफ़ा
कोई लिखता महबूब को हीर
मेरी भी चाह है
लिखूँ सामने बैठाकर तुम्हें
कोई ग़ज़ल या गीत
हर लफ़्ज़ में हो तेरा ही जिक्र
बयां हो तेरी तारीफ़- ए- इल्म
इज़हार ए इश्क़ हो, हद से बढ़कर हो प्रीत
तेरे ख्यालों को तो लिखतीं हूँ हमेशा
रूबरू हो कर लिखूँ कभी
तो ग़ज़ल बन जाए गान,अज़ान,मधुर गीत
उससे ख़ूबसूरत न होगी कोई कविता इस सदी में फिर।।




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15 MAY 2018 AT 23:16

हम क्या तुम थे जो शिकवे रखते
तुम क्या हम थे जो हुक़ूमत की गुलामी करते
रिवायत है जो तुम्हारे दिल की- कि दूर से निहारे
इस सुर्ख अंदाज़ की हम कितनी रातें काटे
तेरे हर सितम पर हमने इनायत की चादर डाली है
तू नाराज़ हो, रूठा हो की खफा हो जाए
बात इतनी भी ना बिगड़े की तू और मैं जुदा हो जाए।।


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11 MAY 2018 AT 2:46

लिखती हूँ, मिटाती हूँ,
तुझे बुरा न लग जाए, ऐसे हर लफ़्ज़ को हटाती हूँ ।
आसूं बाहती हूँ, उन्हें पोछ लेती हूँ,
तुझे मनाना ना पड़ जाए, मैं ख़ुद ही दिल को तेरे बहाने सुना देती हूँ ।
जानकर भी अनजान बनती हूँ,
तेरे झूठ मैले न हो जाए, मैं हर कहा तेरा सच देखती हूँ।
चिल्लाती हूँ, शांत हो जाती हूँ,
तुझे महसूस न हो, मैं मुस्कुरा देती हूँ ।
उसी राह पर चलती हूँ, वापस आती हूँ,
तुझसे शुरू कर तुझी पर अंत करती हूँ ।
तुझसे दूर जाना चाहती हूँ, ठहर जाती हूँ,
यूहीं किसी दिन तुझे मेरी जरूरत न पड़ जाए, मैं ख़ुद को तेरे लिए बाकी रखती हूं।।

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