mahendra modi   (Introverted_spirit(MaheN)
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Posting Rights Revoked.
Joined 6 September 2017


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26 AUG 2018 AT 23:25

मन्द होते होते,
तीव्र विप्लव सी बन जाती है,
सन्नाटे की रातों में,
अब यादें गजलें गाती है,

बुन गयी कहानियां अंधेरों की,
या जिनके पंछी उड़ चले
उन सूने पड़े बसेरों की..!
ख़ामोशी,शून्यता और नीरवता,
चीख चीख शोर मचाती है,
सन्नाटे की रातों में,
अब यादें गजलें गाती है..!!

देखी गयी मुस्कान इन अधरों की,
या शायद भुला दी गयी,
कुछ बेखबरी उन बेख़बरों की..!
नही दिखती बाहर चिंगारी तक,
पर भीतर शोले भड़काती है,
सन्नाटे की रातों में,
अब यादें गजलें गाती है..!!

जलते जलते बाती अपना अंत सुनाती है,
या शायद अंधरे से प्रकाश, और
प्रकाश से अँधेरे तक की बीती बतलाती है..!
उजाले की बातें,
थक हार कर सो जाती है,
सन्नाटे की रातों में
अब यादें गजले गाती है..।।

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26 AUG 2018 AT 21:56

बिसर जाऊं हर जख्म,
सह जाऊं हर दर्द,
मगर प्यार की भीख मांग लूूँ,
मैं वह दीन याचक नही..!

गा लूँ गौरव गाथा जहाँ की,
मगर द्रौपदी के चीर हरण को,
दुशासन का पराक्रम बता लूूँ,
मैं वह कथा वाचक नही..!

ख़ुशीयाँ छोड़ दूँ समष्टि की,
मगर सत्य को भूलाकर,
सारे जहाँ के झुठ पचा लूँ,
मैं वो उच्च पाचक नही..!!

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9 AUG 2018 AT 10:54

बाँधी आंखों पर इंसानो, तुमने ये कैसी अंधौटी?
ढोंग रचा रचा कर पार कर दी कैसे हर कसौटी?

दया,करुणा, सज्जनता और सारे गुण धूल गए,
हम इंसान है, देखो पर इंसानियत भूल गए,

अस्त्र-शस्त्र और रण ,ये सब टाल गए,
हम अपनी बातों से ही औरो को साल गए,

दुखिया हाल में हम दम्भ तोड़ गुहार लगाते है,
फिर क्यों औरो को वेदना में छोड़ कर जाते है,

स्वार्थ सिद्धि में इंसानियत हार जाते है,
क्यों हम भीतर की नेकी मार जाते है?

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9 AUG 2018 AT 8:37

(Read in Caption)

-Mahendrashish

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9 AUG 2018 AT 7:27

सुनना नही चाहते, हम बहरे हो जाना चाहते है,
सदृश से मुख मोड़, अंधे हो जाना चाहते है,

भागकर सोच से, हम कुछ सोचना नही चाहते,
कुछ सच ऐसे होते है, जिन्हें हम जानना नही चाहते.

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15 JUL 2018 AT 19:24

नही सुनाई पड़ता संगीत मिठास भरा वो,
कहते लोग गिटार ने बजना छोड़ दिया,
कौन जाने यहां अब कि,
उसका झंकृत तार किसी ने तोड़ दिया..!

भूल चुका खुद को यहाँ वो,
कहते सब उसने मोह छोड़ दिया,
कौन जाने यहां अब कि,
भूलभुलैया में हाथ किसी ने छोड़ दिया..!!

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26 JUN 2018 AT 20:04

कुछ तान सा छेड़ती है,
या शायद..
सिले जख्म उधेड़ती है,
ये पवन लहरियाँ..!!

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7 JUN 2018 AT 19:44

चलो! इन हदों को पार कर,
उस जगत तक जाते है,
जहाँ हाथों की लकीरें नही,
हौसलें काम करते हैं..!

चलो! खुद को खोल कर,
उस फलक तक जाते है,
जहाँ पंख नही,
मन उड़ान भरते है..!!

चलो...

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4 JUN 2018 AT 10:00

मिलनी बुलंदियाँ हौसलों से,
तो मुट्ठी की लकीरों की फिक्र क्यों..!

छूना जब जाके फलक को,
तो पैरो के निशां का जिक्र क्यों..!!

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30 MAY 2018 AT 20:27

बहता रहा देर तक,
मगर बच गया,
भरा हुआ अंदर तक,
खाली सा मैं,
यह अगर बेकार है तो बेकार सही..!

सोचता रहा देर तक,
और झुक गया,
कि तू जीत जाएं,
इस खातिर मैं,
यह मेरी हार है तो हार सही..!!

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