मन्द होते होते,
तीव्र विप्लव सी बन जाती है,
सन्नाटे की रातों में,
अब यादें गजलें गाती है,
बुन गयी कहानियां अंधेरों की,
या जिनके पंछी उड़ चले
उन सूने पड़े बसेरों की..!
ख़ामोशी,शून्यता और नीरवता,
चीख चीख शोर मचाती है,
सन्नाटे की रातों में,
अब यादें गजलें गाती है..!!
देखी गयी मुस्कान इन अधरों की,
या शायद भुला दी गयी,
कुछ बेखबरी उन बेख़बरों की..!
नही दिखती बाहर चिंगारी तक,
पर भीतर शोले भड़काती है,
सन्नाटे की रातों में,
अब यादें गजलें गाती है..!!
जलते जलते बाती अपना अंत सुनाती है,
या शायद अंधरे से प्रकाश, और
प्रकाश से अँधेरे तक की बीती बतलाती है..!
उजाले की बातें,
थक हार कर सो जाती है,
सन्नाटे की रातों में
अब यादें गजले गाती है..।।
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