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चिर सजग आंखे उनींदी, आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
महादेवी वर्मा
Joined 15 December 2018


चिर सजग आंखे उनींदी, आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
महादेवी वर्मा
Joined 15 December 2018
13 FEB AT 20:41

सुंदर दिखने की चाह मनुष्य को कुरूप बना देती है...
[कैप्शन]*

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9 JAN AT 22:09

सजदा करना जानते हैं, मगर हिजाबों में नहीं है,
तुम्हारी तरह हम फकत, रुवाबों में नहीं हैं।
चले गए थे हमें छोड़कर, एक मुद्दत हुई जिनको,
उन्हें लग रहा है आज, हम खराबों में नहीं हैं।

बुलंदी पे पहुंच जाने का एक आसान सा तरीका है,
सलीके सीख लो मां से, जो किताबों में नहीं हैं।
दरख़्त काट दें केवल, एक घर बनाने के लिए,
ऐसे कोई भी शौक हमारे, ख़्वाबों में नहीं हैं।

कह रहे हैं क़ासिद मुझे उस शख्स का सब लोग,
जिसके एक भी बयान मेरे, जवाबों में नहीं हैं।
ज्यादा महंगे शौक हमें जंचते नहीं कुशन,
हम आदमी तो ठीक हैं, पर नवाबों में नहीं हैं।।

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13 DEC 2023 AT 17:17

I like December,
Not because, I like the winters more than any season,
But because, it makes me realise the importance of spring!

Not because, a day becomes shorter in duration,
But because, it gives me a long night to revive the good memories!

Not because, Santa comes with a lot of gifts,
But because, it breaks the illusion that no Santa exists in real!

Not because, it reminds me of all the heart breaks,
But because, it makes me emotionally strong!

Not because, I've got many friends this year,
But because, I've lost the ones who pretended to be the best!

Not because, I'm such a big foodie,
But because, my mother makes stuffed paratha more often in winters!

I like December,
Not because it is the end,
But because, it's a new beginning after all!

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20 OCT 2023 AT 2:06

किसी की बात को परखा, किसी के हाल को जाना,
कोई है चाल में अपनी, मगन कोई है दीवाना,
कि जिनके साथ साया हम बने, चलते रहे थे तब,
वही अब दे रहे गाली, वही अब दे रहे ताना।

फक़त सुनना मेरी बातों को, दिल से ना लगाना तुम,
शहर में नौकरी करना, मगर ना घर बनाना तुम,
मोहब्बत में भले उसको, यकीनन टूटकर चाहो,
नहीं लेकिन मोहब्बत में किसी का घर जलाना तुम।

तुम्हारे साथ दुनिया है, तुम्हारे बाद भी तो है,
मैं सबकुछ भूल जाता हूं, मगर कुछ याद भी तो है,
तुम्हारी बददुआ जितनी मुसलसल चाह लो दे दो!
कुशन की उस खुदा से पर कहीं फरियाद भी तो है।।

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10 OCT 2023 AT 16:56

एक अरसे से ये वहम हमने, पाल रखा है,
मेरा दिल उन्होंने, आज तक संभाल रखा है,
झूठे वायदे देते तसल्ली खूब हैं लेकिन,
झूठे वायदों में ही मियां, बवाल रखा है।

परिंदे चुग रहे थे खेत में, दाना समझकर जो,
नहीं उनको पता था कि, वहां पे जाल रखा है,
ज़रा सी मुश्किलें ही थीं, कि सबकुछ ठीक हो जाता,
ये तुमने क्या किया, कैसा तुम्हारा हाल रखा है।

हम उनको आज भी वैसे मुकर्रर याद करते हैं,
नहीं ऐसे ही हमने आज तक, रुमाल रखा है,
कुशन तुम ठीक कहते थे, कल पर मत कभी टालो,
हमें लगता था पूरा ही, अभी तो साल रखा है।।

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6 OCT 2023 AT 20:37

रात खामोश थी, चांद में नूर था,
नूर अपने में ही चांद बस चूर था,
चांद से भी मुझे अच्छे, तारे लगे,
वो जैसे भी थे पर, हमारे लगे।।

लोग जख्मों पे मरहम लगाते रहे,
गर लगाना ही था, क्यों जताते रहे,
उनके आंसू को हमने भी पोंछा बहुत,
वे हमीं को मुसलसल रुलाते रहे।
ना मालूम वफ़ा, ना है कुछ पता,
लेकिन सब, मोहब्बत के मारे लगे,
है कपड़ों में तन, फिर भी नंगा बदन,
सच बोलूं, हवस में ही सारे लगे।

क्या चाहा था मैने, खुदा से कुशन,
थोड़ी खुशियां थोड़ा सा चैन-ओ-अमन
पर वो भी कहां ही मुकम्मल हुआ!
हमको तो हमीं फिर बेचारे लगे,
खूब ज्यादा लगे, खूब सारे लगे।

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6 SEP 2023 AT 12:00

केशव ऐसा वर दो मुझको, जिससे तेरा दास बनूं,
तेरे चरणों की रज पाकर, मैं सबका विश्वास बनूं।

नहीं दीखता रंग मुझे, कोई तेरे रंग से सुंदर,
कभी कुसुम बन न्योछावर हूं, तेरा कभी लिबास बनूं।

अद्भुत सांवल काया तेरी, मोर पंख भी सज्जित है,
मेरा जीवन तेरे चरणों की भक्ति में अर्पित है।

सुनो कृष्ण, तुम इस अबोध को विनय शीलता और बल दो,
अहंकार हो नष्ट मेरा, और अपनी छाया शीतल दो।

पुनः पुनः है नमन, और है नहीं कोई भी अभिलाषा,
तुमसे ही है सारी हिम्मत, और तुमसे ही है आशा।।

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29 JUN 2023 AT 21:47

बहनें रुखसत हो जाएं,
तो मालूम होता है।

कितना मुश्किल है घर को,
फिर से घर बनाना।।

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5 NOV 2022 AT 20:36

शायरी या सवाल!
किसे करें मुकम्मल, किसे करें बहाल?

सवाल ये, कि आगे बढ़ रहा मनुष्य,
लेकिन पीछे छोड़ रहा मनुष्यता।
फैला रहा आतंक, और मचा रहा बवाल,
साल दर साल।।

या फिर शायरी, जो सिमट कर रह गई है,
आशिकी में उपजा हुआ, महज एक बवाल।
जहां इश्क के नाम पे, कर रहें हैं सब,
बस एक दूसरे को हलाल।।
है ना कमाल!

शायरी या सवाल!
किसे करें मुकम्मल, और किसे बहाल?

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13 OCT 2022 AT 12:47

क्या हुआ जो,
अहले सितम ढा रहे हो,

एक मुद्दत से,
मुझे आज़मा रहे हो!


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