असाध्य रोगी   (असाध्य_रोगी.?)
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Joined 6 May 2018


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तुम किरणों की धूप हो,
तुम रति काम का रूप हो।
तुम हो तो सांसों का आगमन है,
तुम ही ईश्वर का स्वरूप हो।

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तुमसे लबों पे मुस्कान है,
तुमसे हृदय में जान है।
तुम हो तो जग है हसीन,
तुम हो तो सब रसपान है।

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नैनों में तस्वीर तुम्हारी, छुपा लेंगे हम।
तुम से लेकर इजाजत तुम्हें चुरा लेंगे हम।

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उन गुलाबों को अब तक किताबों में छुपा रखा है,
जिनमें अब तलक तुम्हारी यादों का सिला बचा है।

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जब भी चाहूंगा किसी को,
उसमें ढूंढूंगा तुम्ही को।
चाहे जन्मों मैं राह तकूं।।

जब भी देखूंगा निगाहें,
बस वो चाहूंगा पनाहें।
जिसके संग मैं रात जगूं।।

जब भी थामूंगा हथेली,
मुझसे मिल जाऊंगा मैं ही।
बस यही दिल की एक आरज़ू।

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महक से तुम्हारी, बहक हम है जाते,
चमक से तुम्हारी, जुननू हम हैं पाते।
कैसे लिखे हम तुम्हें अपने लब में,
संग में तुम्हारे, हैं कलम हम उठाते।

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तुम्हारी राहों में थककर हमेशा बैठ जाते हैं,
वहीं हम भीग लेते हैं, वहीं हम मुस्कुराते हैं।

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जिस क्षण से तुम्हें मिला है मेरी चाहत का विकल्प,
तब से कर दिया हमने तुम्हारी गलियों में जाना अल्प।

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मेरी नज़रे लगती जैसे कटार है,
मेरे पीछे लगी सब की कतार है।
पर दिल को जाने क्या खुमार है,
इसको तो बस तेरी यादों से प्यार है।

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काश वो मेरे मौन का शोर सुन लेती,
तो जग को छोड़ वो मुझे चुन लेती।

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