Lavanya Shrotriya   (लावण्या श्रोत्रिय.)
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Joined 10 January 2019


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Joined 10 January 2019
28 JAN 2022 AT 15:14

छत पर बैठी,
जनवरी की धूप और हवा के झोंके...
बसंत के समीप होने की अनुभूति करा रहे हैं...
...छतों पर लहरा रहे कपड़े...
...कहीं से आती किसी गाने की हल्की आवाज़...
कितने सुखद हैं...!!
मैं सोच रही थी,
कि "तुम भी यहीं होते, मेरी छत पर"...!
"ये हवा तुम तक ये बात ले जा सकती"...
...अचानक ही...!
...हवा ज़रा और तेज़ चल पड़ी है...
जाने क्यों...
.....पर ऐसा होना.....!
मुझे कुछ कुछ आशा से भर रहा है....
— % &

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12 MAR 2021 AT 20:47

all the unsaid
chaos,
which they perceive,
tiding high in
the eyes,
they cross paths with !

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9 MAR 2021 AT 19:36

,
जने कितनी बातें निराश्रय हो गयी हैं ...

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3 MAR 2021 AT 19:12

जी भरकर तुम्हें देख ही नहीं पाती,
आख़िर पूरे किस दिन मिलोगे "चंदा"!

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10 FEB 2021 AT 14:11

दुनिया सिर्फ़ प्रेम पढ़ना चाहती है,
विरह का हो या मिलन का।

हम ये दार्शनिक रचनाएँ,,,
किसे सुनाएँ !

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13 MAR 2021 AT 22:30

किस्से, किस्से ही रह जाते हैं,
कहानी पूरी बन नहीं पाती...।

जवाँ उमंगें फिर योगनिद्रा में चली जाती हैं,
चाहकर भी माया में फँस जो नहीं पातीं...।

पता नहीं हवा कब से पत्थर हो गयी है,
जो दिखतीं ही नहीं, वो दीवारें टूट नहीं पातीं...।

ज़िंदगानी और नौजवानी की बातें आप ही करिए,
यहाँ सब को "सैर" के लिए सहूलियत मिल नहीं पाती...।

मैंने कहा ना, किस्से आख़िर किस्से ही रह जाते हैं,
यहाँ कहानी, कभी पूरी बन ही नहीं पाती...।

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13 MAR 2021 AT 21:35

nightime; sensing footsteps behind her...

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11 MAR 2021 AT 14:42

शिवत्व को पाने के लिए,
तजना पड़ता है।
दूसरों से द्वेष रखना,
अहंकार में डूबे रहना,
असंतोषी फिरना,
और किसी से
कुछ भी पाने की चाह रखना,
फिर चाहना प्रेम की ही क्यों ना हो !!

शिवत्व को पाने के लिए,
सब तजना पड़ता है।
ना मानो तो कर देखो !!!

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8 MAR 2021 AT 13:22

स्त्री उस हल्के फुल्के नाज़ुक पौधे की तरह है, जो जब भी ऊपर की ओर विकसित होना चाहता है, तब सुखा देने वाली तपिश, जानवरों का निरंतर भय और तेज़ लू के थपेड़े, उसे दोहरा किए देते हैं। पर सब सहते हुए भी उसके अंदर कभी हीनता या द्वेष के कंटक नहीं पनपते, यदि पनपते हैं, तो संचरण के लिए प्राणवायु, नयी-नयी कोपल पत्तियाँ, नयी इठलाती हुई डालियाँ, बढ़िया लबाबदार फल, और देखते ही देखते वो रूपांतरित हो जाता है एक सुंदर सुरम्य तरु में, जो राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित सुंदरियों से ज़रा भी कम मनमोहक नहीं है!

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2 MAR 2021 AT 12:12

वो जो कभी गुज़रे ही नहीं, समझना नहीं चाहते और
वो जो गुज़र के आए हैं, स्वीकारना नहीं चाहते!

दुनिया में होने वाले ज़्यादातर मतभेदों की, दो वजहें!

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