तेरी निशानियों में इक बात आम सी थीउन सभी को एक न एक दिन टूट जाना था--कुँवर प्रतीक-- -
तेरी निशानियों में इक बात आम सी थीउन सभी को एक न एक दिन टूट जाना था--कुँवर प्रतीक--
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वो उन निशानों में आज भी दिखता हैजिस जगह अरसे तक शीशा रहा मेरा --कुँवर प्रतीक-- -
वो उन निशानों में आज भी दिखता हैजिस जगह अरसे तक शीशा रहा मेरा --कुँवर प्रतीक--
इसलिए भी मुझे सज़ा देर आख़िर तक मिलीगुनाहों का हिसाबगार बस हिसाब करता रहा--कुँवर प्रतीक-- -
इसलिए भी मुझे सज़ा देर आख़िर तक मिलीगुनाहों का हिसाबगार बस हिसाब करता रहा--कुँवर प्रतीक--
बारिश में बारह क्या किस रहा है यहाँदिल टूटा है या कुछ रिस रहा है यहाँ--कुँवर प्रतीक-- -
बारिश में बारह क्या किस रहा है यहाँदिल टूटा है या कुछ रिस रहा है यहाँ--कुँवर प्रतीक--
हर शाम घर की दीवारों में दस्तक होती हैजब से तुम नहीं हो यहाँ तब से वो होती है--कुँवर प्रतीक-- -
हर शाम घर की दीवारों में दस्तक होती हैजब से तुम नहीं हो यहाँ तब से वो होती है--कुँवर प्रतीक--
ये सज़ा मुझको तेरे साथ मिलती रहीतू कहीं बिजी था और कॉल चलती रहीबस तेरे इसी हौसले पर हैरां रहा सफ़रमुझे समझा के किसका हाथ पकड़ती रही--कुँवर प्रतीक-- -
ये सज़ा मुझको तेरे साथ मिलती रहीतू कहीं बिजी था और कॉल चलती रहीबस तेरे इसी हौसले पर हैरां रहा सफ़रमुझे समझा के किसका हाथ पकड़ती रही--कुँवर प्रतीक--
होने को तो जाँ मैं तेरा भी हो सकता था लेकिनइक-तरफ़ा मुहब्बत कहाँ तक ले जाती हमको--कुँवर प्रतीक-- -
होने को तो जाँ मैं तेरा भी हो सकता था लेकिनइक-तरफ़ा मुहब्बत कहाँ तक ले जाती हमको--कुँवर प्रतीक--
हर शाम इन बातों की तरह बदल जाएगीगले लग जा न जाने ये घड़ी कभी आयेगी--कुँवर प्रतीक-- -
हर शाम इन बातों की तरह बदल जाएगीगले लग जा न जाने ये घड़ी कभी आयेगी--कुँवर प्रतीक--
क्या पता वो कब दिल में बिठा कर उतार देइसीलिए अपना पुराना पता भूला नहीं हूँ मैं--कुँवर प्रतीक-- -
क्या पता वो कब दिल में बिठा कर उतार देइसीलिए अपना पुराना पता भूला नहीं हूँ मैं--कुँवर प्रतीक--
ज़िंदगी के खेल बिना चालों के खेल नहीं पाओगे इश्क़ में ज़्यादा मीठा करोगे तो झेल नहीं पाओगे--कुँवर प्रतीक-- -
ज़िंदगी के खेल बिना चालों के खेल नहीं पाओगे इश्क़ में ज़्यादा मीठा करोगे तो झेल नहीं पाओगे--कुँवर प्रतीक--