Kunwar Prateek   (KKunwar Prateek)
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Joined 31 January 2017


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Joined 31 January 2017
11 JAN 2022 AT 18:56

तेरी निशानियों में इक बात आम सी थी
उन सभी को एक न एक दिन टूट जाना था
--कुँवर प्रतीक--

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10 JAN 2022 AT 23:55

वो उन निशानों में आज भी दिखता है
जिस जगह अरसे तक शीशा रहा मेरा
--कुँवर प्रतीक--

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9 JAN 2022 AT 17:05

इसलिए भी मुझे सज़ा देर आख़िर तक मिली
गुनाहों का हिसाबगार बस हिसाब करता रहा
--कुँवर प्रतीक--

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8 JAN 2022 AT 19:57

बारिश में बारह क्या किस रहा है यहाँ
दिल टूटा है या कुछ रिस रहा है यहाँ
--कुँवर प्रतीक--

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7 JAN 2022 AT 20:30

हर शाम घर की दीवारों में दस्तक होती है
जब से तुम नहीं हो यहाँ तब से वो होती है
--कुँवर प्रतीक--

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6 JAN 2022 AT 13:30

ये सज़ा मुझको तेरे साथ मिलती रही
तू कहीं बिजी था और कॉल चलती रही

बस तेरे इसी हौसले पर हैरां रहा सफ़र
मुझे समझा के किसका हाथ पकड़ती रही
--कुँवर प्रतीक--

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5 JAN 2022 AT 22:10

होने को तो जाँ मैं तेरा भी हो सकता था लेकिन
इक-तरफ़ा मुहब्बत कहाँ तक ले जाती हमको
--कुँवर प्रतीक--

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4 JAN 2022 AT 10:10

हर शाम इन बातों की तरह बदल जाएगी
गले लग जा न जाने ये घड़ी कभी आयेगी
--कुँवर प्रतीक--

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3 JAN 2022 AT 18:58

क्या पता वो कब दिल में बिठा कर उतार दे
इसीलिए अपना पुराना पता भूला नहीं हूँ मैं
--कुँवर प्रतीक--

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2 JAN 2022 AT 20:18

ज़िंदगी के खेल बिना चालों के खेल नहीं पाओगे
इश्क़ में ज़्यादा मीठा करोगे तो झेल नहीं पाओगे
--कुँवर प्रतीक--

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