मै अभी तक उस मोड़ पर खड़ा था,
अतीत से आती हुई हँसी और आवाज़ बहुत दूर नही लगी..
कुछ ऐसा लगा जैसे आवाज़ अभी तक बीती नही है।
शायद हाथ बड़ाऊँ तो छू ही लूँ उस आवाज़ को..अचानक घडी देखी तो सेकंड की सूई अपने पेहरे पर परेड कर रही थी..
और अभी तक आपके वापस आने की कोई आहट नही थी।
रात में एक दरार आ गयी थी, अँधेरा जैसे मौत बिखेर रहा था, और आपकी यादें कोड़े बारसा रहीं थी।
आधी रात कट चुकी थी..वो रात हमारी हर उस रात की याद दिलाती थीं जब हम साथ हुआ करते थे..
जब थकी हुई आँखों से में आपको देखता था तो तुमारी आँखों की आवाज़ मुझे सुनाई देती थी।
वो आँखें कहती थी "हाँ, समझती हूँ आपको"
फिर मै अपने हाथो से तुम्हारी कलाई थाम लेता था, तुम्हारी नब्ज़ बहुत तेज़ भगती थीं और वक़्त रुक जाता था।
फिर जब हम एक दूजे को ओड़ कर सोते थे तो नर्म नर्म ख्वाब आते थे। ऐसा लगता था की कभी सुबहा ना हो,
कलाईयों से नब्ज़ की तरह धड़कता वक़्त खोल दूँ, की ये शोर भी थोड़ा तंग करता है।
- Kunwar Love Singh