दूर रहो चाहे जितना,
बस इतना रहो के जुदा ना लगो,,
ज़मी पे हो तुम इंसा बोहत खूबसूरत,
बस इंसान रहो तुम खुदा ना लगो।।-
मेरे शब्दों को तो बस मै ही जानता हूं।।
सबके अपने रंग है, सबके अपने यार है,,
एक हम ही बे-रंग है, एक हम ही बे-यार है।-
हर बार इश्क में, वो शख्स मुझ से बेवफा हो जता है,
हर सावन तसल्ली करता है वो मुझ से ये पूछ कर,
क्या अब भी इश्क करते हो मुझ से,
मैं हां कह देता हू, और फिर वो खफा हो जता है,
हर बार इश्क में, वो शख्स मुझ से बेवफा हो जता है,,-
इक और ठिकां है मेरा,, मेरा "दर-ए-यार"
मैं जब कहीं का नहीं रहता हूं,
तो उसके साथ होता हूं।-
वो चार लफ्ज़ तुझ से गुफ्तगु के तेरे मिलने पर,
उसी मे अपनी सारी जिंदगी समेटे हुए है हम,,
कभी तो फिर से गुजर उसी रास्ते से तू,
अब भी तेरे इंतज़ार में वहीं बैठे हुए है हम,,-
वो चांद" तो समय से आया जो बहुत दूर है,,
इंतहा" तो उसने की जो नजदीक था,,-
वो चांद" तो समय से आया जो बहुत दूर है,,
इंतहा" तो उसने की जो नजदीक था,,-
हु आजाद, इस आजाद शहर में
इन आजाद परिंदों सा, "मगर"
ये घर को लौटते परिंदे हर श्याम अक्सर,
गांव की याद बहुत दिलाते है,,-
ये इश्क़ में मर-मिटने के मौसम तो कब के चले गए,,
अब तो लोग नफ़रत करते हैं मुहब्बत करने वालों से,,-
जिस दिन शराब हात होती है, वो कुछ अंधेरी सी रात होती है।
"जमाने की बात फिर जमाना करता है,
जो मेरी महफिल होती है उसमे सिर्फ तेरी आंखों की बात होती है।-