मैं तकता हूं बारिश अब खिड़की से बस, वो चाहत नहीं रही, कि बूंदे भिगाए मुझे। आज एक अरसे बाद उसके शहर जाना हुआ। वो ना मिले फखत कहीं दिख जाए मुझे। और गर रास्ते टकरा भी गए उससे मेरे, बस पहचान ले, कब कहा गले लगाए मुझे। एक शाम उसने मिलने का वादा भी किया था, सो तबसे न रात हुई न नींद आई मुझे।
हालात का मेरे अंदाजा न लगाना, मैं हिज्र की रात रकीब के किस्से सुन रहा था। धड़कने रुक रही थीं सीना सांस भर रहा था, मैं मुस्कुरा रहा था, आहिस्ता मर रहा था। फिर उस हादसे के बाद मुझे नींद मुकम्मल न हुई, और कोई था जो जागकर भी ख्वाब पूरे कर रहा था।
हमारे दर्मियां कुछ नही अब बस यादें हैं। कुछ साथ के किस्से तो कुछ अधूरे वादे हैं। कुछ बातें हैं जो शायद दोनो कहने से रह गए। कुछ अधूरे सपने हैं जो फकत आंखों से बह गए। एक चांद है हमारे दर्मियां जिसे हर रात तकते हैं। एक बेबसी है जिसे बस दिल में रखते हैं। कुछ नसाज़िया हैं जिन्होंने रिश्ते को ये मुकाम दिया। जो मुकम्मल हो सकता था उसे अधूरी ख्वाइश का नाम दिया। हमारे दर्मियां एक रिश्ता है जिसमे कुछ इस तरह रहते हैं, जिसे खुद से जायदा जानते है उस ही को अजनबी कहते हैं।
और हम कुछ कह न सके। हम उसके शहर से गुज़रे लेकिन, उसके संग रह न सके। आसमा में बादल छाए ज़रूर, सैलाब के डर से बह न सके। ज़ख्म कुरेद नासूर तो कर लिया, फिर दर्द ए दिल हम सह न सके। कोई भी तो नही जो समझे मुझे, हम भी किसी से कुछ कह न सके।